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शिमला, 21 नवंबर। हिमाचल प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक ढांचे में हलचल मचाने वाली हाई-प्रोफाइल जनहित याचिका (CWPIL-26/2025) पर आज (21 नवंबर 2025) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाने जा रहा है। न्यायिक सूत्रों के मुताबिक, कोर्ट नंबर-1 में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ इस अति-संवेदनशील मामले में “जजमेंट प्रोनाउंस” करने की तैयारी में है। यह फैसला प्रदेश की नौकरशाही, राजनीतिक संतुलन और सत्ता संरचना पर बड़ा असर डाल सकता है।
यह जनहित याचिका कैप्टन अतुल शर्मा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें तत्कालीन मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को दिए गए छह महीने के सेवा विस्तार को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत आपराधिक मामला लंबित था, इसके बावजूद नियमों को दरकिनार करते हुए उन्हें सेवा विस्तार प्रदान किया गया। साथ ही, विजिलेंस क्लीयरेंस में भी अनियमितताओं की गंभीर आशंका व्यक्त की गई थी।
मामले की गंभीरता को देखते हुए उच्च न्यायालय पहले ही केंद्र और राज्य सरकार दोनों को विस्तृत एवं गोपनीय रिकॉर्ड पेश करने का सख्त आदेश दे चुका है, जो इस बात का संकेत है कि अदालत पूरे मामले की तह तक जा चुकी है। अब सबकी निगाहें आज के फैसले पर हैं, क्योंकि यदि अदालत सेवा विस्तार को अवैध घोषित करती है, तो इससे पूर्व मुख्य सचिव के कार्यकाल की वैधता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होगा और उन राजनीतिक एवं प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका पर भी असर पड़ेगा जिन्होंने यह एक्सटेंशन मंजूर किया था।
आज का फैसला कई संवेदनशील प्रश्नों का उत्तर दे सकता है—क्या नियमों की अनदेखी हुई? क्या विजिलेंस क्लियरेंस में कोई “खेल” हुआ? क्या सेवा विस्तार राजनीतिक दबाव में दिया गया? अदालत की खंडपीठ आज इन सभी पहलुओं पर से पर्दा उठाने वाली है। सत्ता और नौकरशाही दोनों में इस फैसले का बेसब्री से इंतजार है, क्योंकि यह स्पष्ट करेगा कि न्याय का हथौड़ा आखिर किस पर गिरता है—प्रशासनिक तंत्र के शीर्ष पर या राजनीतिक गलियारों में।
