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हिम ईरा के जरिए ग्रामीण उत्पादों को मिली पहचान, महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

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न्यूज अपडेट्स 
शिमला, 25 दिसंबर। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविन्द्र सिंह सुक्खू ने कहा है कि प्रदेश सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने और महिला स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को ‘हिम ईरा’ ब्रांड के तहत व्यापक बाजार उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि ‘हिमाचल हाट’ प्रमाणिक हिमाचली उत्पादों को प्रदर्शित करने वाला एक जीवंत और आकर्षक बाजार बनेगा।

मुख्यमंत्री ने बताया कि शिमला में लिफ्ट के समीप लगभग दो करोड़ रुपये की लागत से ‘हिमाचल हाट’ का निर्माण किया जाएगा। इस हाट की 25 दुकानों में प्रदेश के सभी 12 जिलों के महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किए गए उत्पाद प्रदर्शित और बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे। यहां ग्रामीण कला, शिल्प, हथकरघा, खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों के साथ-साथ पारंपरिक हिमाचली व्यंजनों को भी एक ही छत के नीचे प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे महिलाओं की आय बढ़ेगी और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन मिलेगा।

ठाकुर सुखविन्द्र सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश सरकार स्वयं सहायता समूहों को फूड वैन भी उपलब्ध करवा रही है, जिससे उन्हें लगभग 50 हजार रुपये प्रतिमाह तक की आय सुनिश्चित हो रही है। वर्तमान में राज्य में 5,428 स्वयं सहायता समूह, 1,257 ग्राम संगठन और 189 क्लस्टर लेवल फेडरेशन गठित किए जा चुके हैं, जो महिला सशक्तिकरण का सशक्त माध्यम बन रहे हैं।

उन्होंने जानकारी दी कि 14,410 स्वयं सहायता समूहों को 36 करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड, 7,567 समूहों को 41 करोड़ रुपये की सामुदायिक निवेश राशि तथा 7,187 परिवारों को प्रति परिवार जोखिम निवारण निधि के रूप में 36 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। ‘हिम ईरा’ की 109 स्थायी दुकानों के माध्यम से 34.95 करोड़ रुपये तथा 81 साप्ताहिक बाजारों के जरिए 29.70 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि वित्त वर्ष 2025-26 में आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना के तहत 10 खंडों को मंजूरी दी गई है, जिसके अंतर्गत 60 वाहन उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक 1.15 करोड़ रुपये की लागत से 18 वाहन स्वीकृत किए जा चुके हैं।

पारंपरिक कला के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रदेश सरकार हिमाचल प्रदेश राज्य हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम के माध्यम से विशेष प्रयास कर रही है। कुल्लू जिले के 11 प्रशिक्षण केंद्रों में 108 प्रशिक्षुओं को तीन महीने से एक वर्ष तक का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, साथ ही 2,400 रुपये मासिक वजीफा भी प्रदान किया जा रहा है। कटराईं, बढ़ई रा ग्रां, सुरढ, डोभी, प्रीणी और खनाग मिथनु जैसे गांवों में हैंड निटिंग, हैंडलूम वीविंग, कारपेट निर्माण और कुल्लवी टोपी निर्माण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे महिलाएं और पुरुष स्वरोजगार से जुड़ रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुल्लू का हस्तशिल्प केवल सांस्कृतिक विरासत नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण और आर्थिक प्रगति का मजबूत आधार है। पर्यटन से बढ़ती मांग और सरकारी योजनाओं ने इस पारंपरिक उद्योग को नई ऊर्जा दी है। कुल्लू-मनाली आने वाले पर्यटक स्थानीय हस्तशिल्प उत्पादों की खरीद कर इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे हजारों कारीगर आत्मनिर्भर बन रहे हैं।

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