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ज्वाली, 04 दिसंबर। हिमाचल की राजनीति, खासकर ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में, एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस के युवा एवं दबंग नेता नीरज भारती के पार्टी छोड़ने की अटकलें ज़ोर पकड़ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में नीरज भारती के चाचा प्रभात चौधरी को ओबीसी बोर्ड का चेयरमैन बनाना इस सियासी तूफ़ान की मूल वजह माना जा रहा है।
यह फैसला नीरज भारती के राजनीतिक क्षेत्र—ज्वाली—में दो समानांतर पावर-सेंटर खड़े करने जैसा देखा जा रहा है। नीरज आगामी विधानसभा चुनाव ज्वाली से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनके चाचा को अहम पद देकर उन्हें संभावित प्रतिद्वंद्वी जैसा बना दिया है। इससे नीरज का असंतोष और बढ़ गया है।
पारिवारिक राजनीतिक विरासत और असंतोष की जड़ें
नीरज भारती के पिता प्रो. चंद्र कुमार प्रदेश के ओबीसी समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। वे दो बार सांसद रहे और हर कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद संभाल चुके हैं। वर्तमान सरकार में वे सबसे वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं, लेकिन उन्हें अपेक्षा से छोटा विभाग दिए जाने से परिवार में नाराज़गी बढ़ी।
सूत्र बताते हैं कि नीरज भारती इस मुद्दे पर महीनों से नाराज़ चल रहे हैं। कुछ समय पहले उन्होंने सरकार छोड़ने की चेतावनी देकर सनसनी फैलाई थी, जिसके बाद सरकार ने तुरंत डेमेज कंट्रोल किया था। हालांकि, हालिया नियुक्ति ने स्थिति को फिर से विस्फोटक बना दिया है।
सरकारी फैसले पर नज़रें—नीरज क्या कदम उठाएंगे?
बताया जा रहा है कि सरकार के समर्थन में नीरज भारती ने लंबे समय से कोई पोस्ट तक नहीं डाली, जो उनकी नाराज़गी की ओर इशारा करती है। अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री के इस कदम को नीरज किस रूप में लेते हैं—सहनशीलता, बगावत या नई राह चुनने के संकेत?
क्या नीरज भारती बीजेपी में जा सकते हैं या लड़ेंगे स्वतंत्र?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर नीरज कांग्रेस छोड़ते हैं, तो ज्वाली में पार्टी की जमानत तक खतरे में पड़ सकती है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीरज भारती बीजेपी ज्वाइन करने की बजाय स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अधिक मजबूती से लड़ सकते हैं। Independent के रूप में उनका प्रभाव वोटों में सीधा रूप से झलक सकता है।
ज्वाली की राजनीति एक उबाल के कगार पर है। नीरज भारती के अगले कदम पर पूरा प्रदेश की नज़रें टिक गई हैं। क्या वह कांग्रेस में रहकर संघर्ष करेंगे, बगावत का बिगुल फूंकेंगे, या फिर नई राजनीतिक पारी शुरू करेंगे—यह आने वाले दिनों में साफ होगा।
