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‘ग्रीन टू गोल्ड’ से बदलेगी हिमाचल की तस्वीर, भांग बनेगी किसानों की आय का नया आधार

Anil Kashyap
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न्यूज अपडेट्स 
शिमला, 27 दिसंबर। हिमाचल प्रदेश को वर्ष 2027 तक आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प को साकार करने की दिशा में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। प्रदेश सरकार ने ‘ग्रीन टू गोल्ड’ पहल के तहत औद्योगिक और औषधीय उपयोग वाली भांग की नियंत्रित खेती को बढ़ावा देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस पहल से न केवल किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, बल्कि हिमाचल प्रदेश वैश्विक बायो-इकोनॉमी में अपनी मजबूत पहचान भी बना सकेगा।

अब तक कुल्लू, मंडी और चंबा जैसी घाटियों में जंगली रूप से उगने वाली भांग को नशे और अवैध कारोबार से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन प्रदेश सरकार ने इसके औषधीय और औद्योगिक गुणों को पहचानते हुए इसे एक मूल्यवान संसाधन के रूप में स्वीकार किया है। औद्योगिक भांग का उपयोग पर्यावरण अनुकूल कपड़ा उद्योग, कागज व पैकेजिंग, कॉस्मेटिक, बायो-फ्यूल, ऊर्जा उद्योग और बायो-प्लास्टिक जैसे आधुनिक उत्पादों के निर्माण में किया जाएगा। इससे हिमाचल प्रदेश पर्यावरण हितैषी औद्योगिक विकास का प्रमुख केंद्र बनकर उभरेगा।

इस नीति के तहत औद्योगिक उपयोग के लिए उगाई जाने वाली भांग में टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (टीएचसी) की मात्रा 0.3 प्रतिशत से कम रखी जाएगी, ताकि इसका किसी भी प्रकार से नशे के लिए दुरुपयोग न हो सके। वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप खेती से उच्च गुणवत्ता वाला फाइबर और बीज उत्पादन सुनिश्चित किया जाएगा। इस तरह सरकार ने सामाजिक सरोकारों और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि 24 जनवरी 2025 को आयोजित मंत्रिमंडल बैठक में भांग की नियंत्रित खेती के पायलट अध्ययन प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है। इस पहल का उद्देश्य भांग की नकारात्मक छवि को बदलकर इसे एक सशक्त आर्थिक संसाधन के रूप में स्थापित करना है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, पूरी तरह लागू होने पर इस परियोजना से राज्य को सालाना 500 से 2000 करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता है। सरकार एक मजबूत कानूनी और वैज्ञानिक ढांचा तैयार कर उस बाजार पर नियंत्रण चाहती है, जिस पर अब तक अवैध कारोबार या अंतरराष्ट्रीय आयात का दबदबा रहा है।

यह योजना किसानों के लिए भी लाभकारी साबित होगी। भांग एक जलवायु-अनुकूल फसल है, जिसे कपास जैसी फसलों की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत कम पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही इस फसल को जंगली जानवरों से नुकसान का खतरा भी नहीं रहता, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों को बड़ी राहत मिलेगी।

इस पहल को सफल बनाने के लिए चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर और डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी को कम टीएचसी और उच्च उपज वाले बीज विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं, राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने उत्तराखंड के डोईवाला और मध्यप्रदेश में हो रही भांग की खेती का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।

मुख्यमंत्री का लक्ष्य हिमाचल प्रदेश को पर्यावरण अनुकूल निर्माण सामग्री, विशेष वस्त्रों और आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण का प्रमुख केंद्र बनाना है। इससे न केवल वर्ष 2032 तक हिमाचल को देश के सबसे समृद्ध राज्यों में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त होगा, बल्कि युवाओं के लिए नए स्टार्टअप और रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया है कि सरकार नशे को नहीं, बल्कि उद्योग को बढ़ावा दे रही है, ताकि राज्य की प्राकृतिक संपदा का लाभ नशा माफिया के बजाय सीधे किसानों और सरकारी खजाने तक पहुंचे।

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