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सोलन, 20 दिसंबर। हिमाचल प्रदेश जिसे देशभर में दवा निर्माण का मजबूत स्तंभ और फार्मा हब माना जाता है, आज खुद सवालों के घेरे में खड़ा नजर आ रहा है। जिस प्रदेश की दवाएं देश के कोने-कोने तक मरीजों की सेहत का सहारा बनती हैं, वहीं लगातार फेल हो रहे दवाओं के सैंपल चिंता को और गहरा कर रहे हैं। ताज़ा जांच में न सिर्फ देशभर की दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं, बल्कि हिमाचल में बनी कई दवाएं भी तय मानकों पर खरी नहीं उतर पाई हैं। सबसे गंभीर बात यह है कि इनमें ऐसी दवाएं शामिल हैं, जो बुखार, दिल और अन्य जानलेवा बीमारियों में मरीजों को दी जाती हैं। ऐसे में यह मामला सिर्फ गुणवत्ता का नहीं, बल्कि आम लोगों की सेहत से बड़े खिलवाड़ का बनता जा रहा है।
देश में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर की गई ताजा जांच में करीब 200 दवाओं के सैंपल फेल पाए गए हैं। इनमें बुखार, शुगर, मिर्गी और दिल से जुड़ी बीमारियों की दवाएं शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 47 दवाएं हिमाचल प्रदेश में बनी हुई हैं। हिमाचल प्रदेश को देशभर में दवा निर्माण का बड़ा केंद्र माना जाता है। बद्दी, सोलन, सिरमौर और ऊना जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में सैकड़ों फार्मा कंपनियां काम कर रही हैं। ऐसे में जीवन रक्षक दवाओं के सैंपल फेल होना सीधे तौर पर मरीजों की सेहत से खिलवाड़ है।
नवंबर महीने में केंद्रीय औषधि मानक संगठन और राज्य दवा नियंत्रक विभाग ने मिलकर दवाओं के सैंपल उठाए थे। जांच के दौरान केंद्र की ओर से 65 और राज्य स्तर पर 135 सैंपल लिए गए। इनमें से हिमाचल में बनी 47 दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतर सकीं।
जिला-वार आंकड़ों पर नजर डालें तो
सोलन जिले की 28 दवाएं,
सिरमौर जिले की 18 दवाएं,
जबकि ऊना जिले की एक दवा फेल पाई गई।
जिन दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं, उनमें आमतौर पर हर घर में इस्तेमाल होने वाली दवाएं शामिल हैं। बुखार की पैरासिटामोल से लेकर हार्ट अटैक में दी जाने वाली क्लोपिडोग्रेल और एस्प्रिन, शुगर कंट्रोल करने वाली मेटफॉर्मिन, हार्ट की रेमिप्रिल और मिर्गी के मरीजों की सोडियम वैल्प्रोएट जैसी दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में असफल रहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ऐसी जरूरी दवाएं ही मानकों पर खरी नहीं उतर रहीं, तो यह मरीजों की जान के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
राज्य दवा नियंत्रक विभाग ने सैंपल फेल होने पर संबंधित दवा कंपनियों को नोटिस जारी कर दिए हैं। विभाग ने इन कंपनियों को बाजार से संबंधित दवाओं का स्टॉक तुरंत वापस मंगवाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही यह भी साफ किया गया है कि नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि जिन कंपनियों के सैंपल बार-बार फेल पाए जा रहे हैं, उन्हें ब्लैकलिस्ट करने से भी सरकार पीछे नहीं हटेगी।
सोलन और बद्दी जैसे औद्योगिक इलाकों ने हिमाचल को दवा निर्माण का मजबूत केंद्र बनाया है। लेकिन लगातार दवाओं के सैंपल फेल होने से न केवल प्रदेश की साख को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि देशभर के मरीजों में भी भरोसे की कमी पैदा हो रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब केवल कार्रवाई ही नहीं, बल्कि दवा निर्माण की पूरी प्रक्रिया पर सख्त निगरानी जरूरी है, ताकि हिमाचल की पहचान एक भरोसेमंद फार्मा हब के रूप में बनी रह सके और मरीजों की सेहत से कोई समझौता न हो।
