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शिमला, 07 दिसंबर। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सोलन जिले के नालागढ़ क्षेत्र में अवैध खनन गतिविधियों और स्टोन क्रशर इकाइयों की ओर से प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों के उल्लंघन पर कड़े निर्देश दिए हैैं। अदालत ने कहा कि पुलिस अधीक्षक सोलन और बद्दी यह सुनिश्चित करेंगे कि अवैध खनन में शामिल वाहनों के खिलाफ केवल चालान नहीं किया जाए, बल्कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 और हिमाचल प्रदेश माइनर मिनरल्स रूल्स, 2015 के प्रावधानों के तहत वाहनों की कुर्की कानून के अनुसार की जाए। उन्हें कठोर शर्तों पर ही छोड़ा जाए।
मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने भविष्य में नियमों की सख्त अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को स्टोन क्रशर इकाइयों का निरीक्षण मासिक आधार पर करने को कहा है। इसके साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को प्रत्येक चार महीने में क्रशर परिसर का निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं।
अदालत ने जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह निर्देश दिए है। हंदूर पर्यावरण मित्र संस्था की ओर से यह जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें नालागढ़ में अवैध खनन, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण और स्टोन क्रशर इकाइयों द्वारा प्रभावी अनुमति के बिना संचालन को चुनौती दी गई थी। अदालत ने याचिकाकर्ता को भविष्य में किसी भी उल्लंघन की स्थिति में याचिका को फिर से दायर करने की स्वतंत्रता दी गई है। कोर्ट को बताया गया कि आठ स्टोन क्रशर इकाइयों से कुल 75,25,800 की पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि वसूली गई। दो इकाइयों को कमियां दूर करने के बाद जुर्माना भरकर संचालन की अनुमति दी गई।
पुलिस अधीक्षक बद्दी की ओर से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि 31 जुलाई 2025 तक 51 एफआईआर (अवैध खनन के लिए) दर्ज की गईं। 19 मामले अभी विचाराधीन हैं, जबकि 32 कोर्ट भेजे जा चुके हैं। अवैध खनन में शामिल 30 जेसीबी, 44 टिप्पर, 7 ट्रैक्टर और 2 कारों सहित कई वाहनों को जब्त किया गया।
सहमति से बनाए संबंध शादी का झूठा वादा नहीं
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दुष्कर्म और एससी-एसटी के तहत दायर एफआईआर को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच जो शारीरिक संबंध बने थे, वह दोनों की सहमति से थे। अदालत ने कहा कि सहमति से बनाए गए संबंध शादी का झूठा वादा नहीं है। न्यायाधीश विरेंद्र सिंह की अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता विवाहित महिला थी और शादीशुदा थी। हालांकि, जब वह गर्भवती हुई, उस समय उसकी तलाक की अर्जी विचाराधीन थी। अपराध के लिए केवल यह आधार पर्याप्त नहीं है कि पीड़िता अनुसूचित जाति से संबंध रखती है।
इन्हीं आधारों पर अदालत ने याचिकाकर्ता विक्रम सिंह के खिलाफ दायर एफआईआर और उससे संबंधित सभी कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दिया है। यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म) और 506 (आपराधिक धमकी) के साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1) के तहत पुलिस स्टेशन मनाली में वर्ष 2019 में दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में एफआईआर रद्द करने को लेकर याचिका दायर की थी। उसने तर्क दिया कि प्रतिवादी शिकायतकर्ता के उसकी मुलाकात ऑस्ट्रेलिया में हुई थी और दोनों के बीच सहमति से संबंध बने थे।
काल्पनिक पदोन्नति पर वेतन निर्धारण का विकल्प कर्मचारी का अधिकार
हाईकोर्ट ने कहा कि पिछली तारीख से काल्पनिक (नोशनल) आधार पर दी गई नियमित पदोन्नति के मामले में कर्मचारी को वेतन निर्धारण के लिए विकल्प (पे फिक्सशेन) का लाभ उठाने का अधिकार है।
न्यायालय ने वित्त विभाग के उस निर्देश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि काल्पनिक पदोन्नति में विकल्प का प्रावधान नहीं है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की अदालत ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की ओर से 18 मार्च 2019 को दिए गए विकल्प पर कानून के अनुसार छह सप्ताह में कार्यवाही करें। याचिकाकर्ता को होने वाले सभी मौद्रिक लाभों का भुगतान भी किया जाए।
अदालत ने कहा कि भले ही पदोन्नति को पिछली तारीख से काल्पनिक आधार पर दिया गया हो, लेकिन वह पदोन्नति मूल स्वरूप में नियमित पदोन्नति ही रहती है। पिछली पदोन्नति नियमित आधार पर हुई है इसलिए कर्मचारी वेतन निर्धारण का विकल्प चुनने के हकदार हैं। काल्पनिक पदोन्नति देने मात्र से नियमित पदोन्नति का चरित्र समाप्त नहीं हो जाता। कोर्ट ने याचिकाकर्ता नरेंद्र कुमार की ओर से दायर रिट याचिका पर यह फैसला दिया।
