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कुल्लू, 02 अक्टूबर। कुल्लू में ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय दशहरा महोत्सव की शुरुआत हो गई है। आपदा के गहरे जख्मों के बीच भी देवभूमि की आस्था और परंपरा ने नई उम्मीद जगाई है। ढालपुर मैदान में बुधवार को भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ इस महोत्सव का शुभारंभ हुआ। जैसे ही शाम 4:30 बजे रथ खींचा गया, पूरा मैदान “जय श्री राम” और “जय देव” के उद्घोषों से गूंज उठा। ढोल-नगाड़ों और शहनाइयों की गूंज ने वातावरण को भक्ति और उल्लास से भर दिया।
कुल्लू दशहरा को देवताओं का महाकुंभ कहा जाता है, क्योंकि यहां सैकड़ों देवी-देवता एक जगह जुटते हैं। इस बार 332 देवी-देवताओं को न्योता भेजा गया है, जिनमें से 200 से अधिक बुधवार शाम तक ढालपुर पहुंच चुके थे। कई देवी-देवताओं ने 150–200 किलोमीटर की लंबी और कठिन यात्रा तय कर उत्सव में शिरकत की है। खासतौर पर आनी-निरमंड, माता हिडिंबा, बिजली महादेव और आउटर सिराज क्षेत्र के देवी-देवताओं की मौजूदगी विशेष आकर्षण रही।
साल 1660 से लगातार मनाया जा रहा यह पर्व 365 साल पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए है। इस बार की थीम “आपदा से उत्सव की ओर” रखी गई है, ताकि लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन को उत्सव की तरह जीना जरूरी है। हालांकि हालिया आपदा को देखते हुए इस बार उत्सव का स्वरूप सादा रखा गया है। विदेशी सांस्कृतिक दल, बॉलीवुड कलाकार और वॉलीबॉल प्रतियोगिता इसमें शामिल नहीं होगी।
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने भगवान रघुनाथ के अस्थायी शिविर में जाकर आशीर्वाद लिया और इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने। प्रशासन ने सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं। करीब 1,200 पुलिस जवानों की तैनाती की गई है, जबकि सभी 14 सेक्टरों की निगरानी ड्रोन कैमरों और 136 CCTV से की जा रही है।
कुल्लू दशहरे में इस बार आउटर सिराज से आए देवी-देवता भी केंद्र में रहे। इनमें खुडीजल महाराज, शमशरी महादेव, व्यास ऋषि, कोट पझारी, जोगेश्वर महादेव, कुईकंडा नाग, टकरासी नाग, चोतरु नाग, बिशलू नाग, देवता चंभू उर्टू, देवता चंभू रंदल, देवता चंभू कशोली, शरशाई नाग, भुवनेश्वरी माता दुराह और सप्तऋषि थंथल शामिल हैं। इनकी मौजूदगी ने महोत्सव की भव्यता और बढ़ा दी है।
