न्यूज अपडेट्स
नालागढ़ (सोलन), 04 अक्टूबर। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में संदिग्ध कफ सिरप पीने से 9 मासूम बच्चों की मौत हो गई है। इस घटना के बाद देश के सबसे बड़े दवा निर्माण केंद्र हिमाचल प्रदेश का फार्मा उद्योग एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गया है।
जानकारी के अनुसार, परासिया ब्लॉक में पिछले महीने से बच्चों को खांसी-जुकाम की शिकायत थी। इलाज के दौरान उन्हें खांसी का सिरप पिलाया गया, लेकिन दवा असर करने के बजाय जानलेवा साबित हुई। बच्चों की हालत बिगड़ने के बाद नागपुर समेत कई बड़े अस्पतालों में भर्ती करवाया गया, मगर एक के बाद एक कर 9 बच्चों ने दम तोड़ दिया।
प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि जिस सिरप का सेवन बच्चों को कराया गया उसमें एथिलीन ग्लाइकॉल और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल जैसे खतरनाक केमिकल मौजूद थे। ये केमिकल गाड़ियों के कूलेंट और एंटीफ्रीज लिक्विड में इस्तेमाल होते हैं और विशेषज्ञों के मुताबिक इसकी मामूली मात्रा भी किडनी और मस्तिष्क को गंभीर नुकसान पहुंचाती है।
इस घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु सरकार को पत्र लिखकर कफ सिरप की जांच करवाने और उत्पादन पर रोक लगाने की सिफारिश की है। मामले की गंभीरता को देखते हुए हिमाचल सरकार ने तुरंत एक्शन लिया है।
हिमाचल प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर मनीष कपूर ने बताया कि एहतियातन नेक्सा डीएस समेत कुछ कफ सिरप के उत्पादन पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश से मध्य प्रदेश को सप्लाई हुई दवाओं की पहचान कर ली गई है और CDSCO (सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन) के साथ मिलकर जांच शुरू कर दी गई है।
हिमाचल प्रदेश देश का सबसे बड़ा फार्मा हब है, जहां भारत की करीब 70 प्रतिशत दवाइयों का उत्पादन होता है। यहां तैयार दवाओं की सप्लाई न सिर्फ पूरे देश में बल्कि विदेशों में भी की जाती है। यही कारण है कि यहां की औषधि गुणवत्ता को लेकर हर बार सवाल उठने पर उद्योग की साख पर गहरा असर पड़ता है।
यह पहला मौका नहीं है जब हिमाचल में बनी दवाओं को लेकर सवाल उठे हों। पिछले वर्षों में कई नामी कंपनियों के दवा सैंपल बार-बार जांच में फेल होते रहे हैं। बार-बार सामने आने वाली ऐसी घटनाएं न केवल हिमाचल की छवि को धूमिल करती हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय दवाओं की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती हैं।
