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शिमला, 03 अक्टूबर। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष पद अब एक भारी बोझ बन गया है। पार्टी के भीतर गहराते गुटबाजी के संकट ने इस पद की चमक फीकी कर दी है। कोई भी बड़ा नेता इस जिम्मेदारी को लेने से कतरा रहा है। अप्रैल 2023 से पार्टी की सभी इकाइयाँ भंग पड़ी हैं और नई कमेटी के गठन का इंतजार है। इस अनिश्चितता ने कार्यकर्ताओं को निष्क्रिय कर दिया है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के बीच तनाव इस संकट की एक बड़ी वजह है। राज्यसभा चुनाव में हुई हार ने इस आग में घी का काम किया। छह कांग्रेस विधायकों के विद्रोह ने पार्टी की नींव हिला दी। दिल्ली की आलाकमान ने इसकी जांच के लिए रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हुई है।
पूर्व अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। उन्हें केवल प्रभारी की भूमिका में रखा गया है। उनके हटने की अटकलें पहले से ही हैं। माना जा रहा है कि नए अध्यक्ष का चुनना पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस पद पर बैठने वाले नेता को गुटबाजी की आग में झुलसने का डर सता रहा है।
मुख्यमंत्री सुक्खू ने सुझाव दिया था कि नया अध्यक्ष एससी समुदाय से या मंत्रिमंडल से चुना जा सकता है। इससे सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल होगा। वहीं, विक्रमादित्य सिंह जैसे नेताओं का मानना है कि अध्यक्ष एक कद्दावर नेता होना चाहिए। उसका कम से कम दो-तीन जिलों में राजनीतिक प्रभाव होना जरूरी है।
हालाँकि, उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने स्पष्ट मना कर दिया है। उन्होंने पार्टी आलाकमान को सूचित कर दिया है कि वह इस पद की जिम्मेदारी नहीं लेंगे। यह फैसला हैरान करने वाला है क्योंकि विपक्ष के नेता रहते हुए उन्होंने पार्टी को सत्ता तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
रोहित ठाकुर जैसे युवा नेता चर्चा में हैं जो संगठन को मजबूत करने का दावा करते हैं। लेकिन वे भी गुटबाजी के दलदल में फँसने से डर रहे हैं। विधानसभा उपाध्यक्ष विनय कुमार और सुरेश कुमार जैसे नेता इच्छुक जरूर हैं। पर उनमें पूरे प्रदेश में पार्टी को एकजुट करने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।
हिमाचल में हर पाँच साल में सरकार बदलने का रिकॉर्ड है। ऐसे में, 2027 के विधानसभा चुनाव में सत्ता बरकरार रखना आसान नहीं होगा। नया अध्यक्ष इसी चुनौती का सामना करेगा। इसलिए कोई भी अनुभवी नेता इसकी जिम्मेदारी लेने से हिचकिचा रहा है।
पार्टी की आलाकमान की चुप्पी इस पूरे संकट को और गहरा रही है। नई कार्यकारिणी बनाने की प्रक्रिया नवंबर 2023 में शुरू होनी थी। लेकिन तब संगठन को ही भंग कर दिया गया। तब से लेकर आज तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। इस देरी ने पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा फैला दी है। नेतृत्व के इस खाली का असर पार्टी के जमीनी संगठन पर पड़ रहा है। ब्लॉक और जिला स्तर पर कोई समिति नहीं है। इससे पार्टी का सरकार पर भी नियंत्रण कमजोर हुआ है। कार्यकर्ता बिना दिशा-निर्देश के असमंजस में हैं। उनका मनोबल गिरता जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस एक नाजुक मोड़ पर खड़ी है। अगर जल्द ही मजबूत और सर्वमान्य नेतृत्व नहीं मिला, तो स्थिति और बिगड़ सकती है। पड़ोसी राज्यों में कांग्रेस की आंतरिक कलह के उदाहरण सामने हैं। हिमाचल उसी रास्ते पर चल पड़ेगा, यह चिंता सभी को सता रही है।
आने वाले दिनों में दिल्ली से आने वाला फैसला ही पार्टी की दशा और दिशा तय करेगा। प्रदेश अध्यक्ष का पद फिर से सम्मानजनक बन सकता है। या फिर यह एक ऐसा जहरीला सांप बनकर रह जाएगा, जिसे गले लगाने की किसी में हिम्मत नहीं होगी।