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हिमाचल में अफसरशाही - सरकार और हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहे अधिकारी

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न्यूज अपडेट्स 
शिमला, 21 अक्टूबर। हिमाचल प्रदेश में इस समय पंचायत चुनाव को लेकर गंभीर स्थिति बनती जा रही है। राज्य के सभी जिलों के उपायुक्त (DC) अब सीधे-सीधे हाईकोर्ट और सरकार दोनों के आदेशों की अवमानना करते दिख रहे हैं। कारण- अभी तक किसी भी जिले में पंचायतीराज चुनाव के लिए आरक्षण रोस्टर तैयार नहीं हुआ है, जबकि इसे 25 सितंबर तक हर हाल में पूरा कर लेना आवश्यक था।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट ने मनीष धर्मेक बनाम राज्य सरकार मामले में पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि पंचायत और नगर निकाय चुनावों के लिए आरक्षण रोस्टर चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से कम से कम 90 दिन पहले तय होना चाहिए।

कोर्ट का उद्देश्य यह था कि यदि किसी नागरिक को आरक्षण सूची पर आपत्ति हो, तो वह अदालत में अपील दायर कर सके और कोर्ट के पास भी उस आपत्ति का निपटारा करने के लिए पर्याप्त समय रहे।

मगर अब हालात यह हैं कि सेक्रेटरी, पंचायतीराज विभाग ने भी 15 सितंबर को सभी जिलों को आदेश जारी किए थे। जिसमें स्पष्ट लिखा था कि, “25 सितंबर तक प्रधान, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य, इन सभी पदों के लिए आरक्षण रोस्टर लगा दिया जाए।”

अब 25 सितंबर की तय सीमा बीते लगभग एक महीना हो चुका है, लेकिन अभी तक किसी जिले में यह प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई। इस देरी से न सिर्फ हाईकोर्ट के आदेशों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि इससे पंचायत चुनाव की संवैधानिक प्रक्रिया भी प्रभावित होती दिख रही है।

वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह कई बार यह दावा कर चुके हैं कि पंचायत चुनाव तय समय पर होंगे। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है क्योंकि बिना आरक्षण रोस्टर के चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ ही नहीं सकती। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब अभी तक आरक्षण तय नहीं हुआ, तो दिसंबर-जनवरी में प्रस्तावित चुनाव कैसे संभव होंगे?

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा था कि, “आरक्षण रोस्टर चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से तीन महीने पहले लगाया जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति यदि इसे चुनौती देना चाहता है, तो उसके पास कम से कम 90 दिन का समय रहे।”

इससे यह सुनिश्चित होता है कि यदि किसी को किसी पद पर आरक्षण से आपत्ति है, तो वह समय रहते अदालत में जा सके और कोर्ट को भी फैसला देने के लिए पर्याप्त अवधि मिले। देरी की स्थिति में न केवल अपील का अधिकार छिन जाता है, बल्कि इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया में विलंब होता है।

हिमाचल प्रदेश में कुल 3577 पंचायतें हैं, जिनके लिए दिसंबर 2025 में चुनाव प्रस्तावित हैं। मौजूदा पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 23 जनवरी 2026 को समाप्त हो रहा है। संविधान के अनुसार, राज्य चुनाव आयोग को 23 जनवरी से पहले चुनाव संपन्न करवाना अनिवार्य है। लेकिन जनवरी में शिमला, मंडी, चंबा, किन्नौर, लाहौल-स्पीति, सिरमौर, कांगड़ा और कुल्लू जैसे जिलों में भारी बर्फबारी होती है। ऐसे में दिसंबर ही एकमात्र उपयुक्त समय है जब चुनाव सुचारू रूप से हो सकते हैं।

अब जबकि आरक्षण रोस्टर तक तैयार नहीं हुआ, तो सवाल उठना लाजिमी है, क्या वाकई पंचायत चुनाव समय पर हो पाएंगे? या फिर एक बार फिर प्रशासनिक देरी और राजनीतिक दखल के चलते लोकतांत्रिक प्रक्रिया ठप हो जाएगी?

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