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नेशनल डेस्क। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एच-1बी वीजा को लेकर बड़ा फैसला लिया है। ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए एच-1बी वीजा की वार्षिक फीस को 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) करने की घोषणा की है। इस फैसले का सीधा असर अमेरिका में कार्यरत भारतीय पेशेवरों और भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ने वाला है।
अमेरिकी नौकरियों की रक्षा का दावा
व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और वीजा प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है। उनके अनुसार, एच-1बी दुनिया का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाने वाला वीजा है। नई व्यवस्था के बाद केवल वही विदेशी पेशेवर अमेरिका आ पाएंगे, जो वास्तव में उच्च कौशल वाले हों और जिनकी जगह अमेरिकी कर्मचारी नहीं ले सकते।
भारतीय सबसे ज्यादा प्रभावित
इस फैसले से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा, क्योंकि एच-1बी वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी भारतीय ही रहे हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में दो लाख से अधिक भारतीय पेशेवरों को यह वीजा मिला था। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से 2023 के बीच स्वीकृत एच-1बी वीजा में 73.7% भारतीयों को जारी हुए। इसके बाद चीन (16%), कनाडा (3%), ताइवान और दक्षिण कोरिया (1.3%) रहे।
कंपनियों पर बढ़ेगा बोझ
नए आदेश के तहत विदेशी कर्मचारियों को रखने वाली कंपनियों को हर साल प्रति वीजा 1 लाख डॉलर शुल्क देना होगा। यह तीन साल की अवधि और उसके नवीनीकरण पर भी लागू होगा। ऐसे में ग्रीन कार्ड प्रक्रिया लंबी होने की स्थिति में कंपनियों को साल दर साल भारी राशि चुकानी पड़ेगी। विश्लेषकों का कहना है कि इससे कंपनियां भारतीय पेशेवरों को रखने से बचेंगी और अमेरिकी युवाओं को प्राथमिकता देंगी।
भारतीय आईटी कंपनियों पर असर
नई नीति का सबसे बड़ा असर इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा। ये कंपनियां परंपरागत रूप से एच-1बी वीजा का उपयोग जूनियर और मिड-लेवल इंजीनियरों को अमेरिकी क्लाइंट प्रोजेक्ट्स पर भेजने में करती रही हैं। बढ़ी हुई फीस से कंपनियों का बोझ बढ़ेगा और भारतीय पेशेवरों के लिए अवसर कम हो सकते हैं।
छात्रों के लिए भी मुश्किलें
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव से भारतीय छात्रों की संख्या पर भी असर पड़ेगा। वीजा प्रक्रिया कठिन और महंगी होने से अमेरिका उच्च शिक्षा के लिए पहले जितना आकर्षक नहीं रहेगा।
क्या है एच-1बी वीजा?
अमेरिका हर साल कंपनियों को 65-85 हजार एच-1बी वीजा उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त एडवांस डिग्रीधारकों के लिए 20 हजार अतिरिक्त वीजा दिए जाते हैं। यह वीजा तीन साल के लिए मान्य होता है और इसे अगले तीन साल के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है। गूगल (अल्फाबेट), अमेजन, मेटा, इंफोसिस और टीसीएस जैसी दिग्गज कंपनियां इसका बड़े पैमाने पर उपयोग करती हैं।
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले ने अमेरिका में काम कर रहे भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
