न्यूज अपडेट्स
लाहौलस्पीति, 28 सितंबर। लाहौल-स्पीति जिले की स्पीति घाटी को यूनेस्को के प्रतिष्ठित मानव और बायोस्फीयर (एमएबी) कार्यक्रम के तहत देश का पहला शीत मरुस्थल बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया है। यह मान्यता चीन के हांगझोउ में आयोजित 37वीं अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद (एमएबी-आईसीसी) की बैठक के दौरान प्रदान की गई। इस उपलब्धि के साथ भारत के कुल 13 बायोस्फीयर रिजर्व अब एमएबी नेटवर्क का हिस्सा बन गए हैं। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने इस सफलता को राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों और स्थानीय समुदायों के योगदान का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि हिमाचल सरकार विकास और प्रकृति के बीच संतुलन साधते हुए जलवायु परिवर्तन के दौर में प्रदेश की समृद्ध पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
स्पीति कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व लगभग 7,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें संपूर्ण स्पीति वन्यजीव प्रभाग (7,591 वर्ग किलोमीटर) और लाहौल वन प्रभाग के आसपास के हिस्से जैसे बारालाचा दर्रा, भरतपुर और सरचू (179 वर्ग किलोमीटर) शामिल हैं। यह क्षेत्र समुद्र तल से 3,300 से 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भारतीय हिमालय के ट्रांस-हिमालय जैव-भौगोलिक प्रोविंस के अंतर्गत आता है। रिजर्व को तीन जोनों में विभाजित किया गया है, जिनमें 2,665 वर्ग किलोमीटर का कोर जोन, 3,977 वर्ग किलोमीटर का बफर जोन और 1,128 वर्ग किलोमीटर का ट्रांजिशन जोन शामिल है। इसमें पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान, किब्बर वन्यजीव अभयारण्य, चंद्रताल आर्द्रभूमि और सरचू के मैदान भी शामिल किए गए हैं।
यह क्षेत्र अपनी अनूठी शीत रेगिस्तानी पारिस्थितिकी के लिए जाना जाता है। यहां 655 प्रकार की जड़ी-बूटियां, 41 झाड़ियां और 17 वृक्ष प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 14 स्थानिक और 47 औषधीय पौधे शामिल हैं। इन औषधीय पौधों का उपयोग पारंपरिक सोवारिग्पा या आमची चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। वन्यजीवों की दृष्टि से भी यह क्षेत्र बेहद समृद्ध है। यहां 17 स्तनपायी और 119 पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हिम तेंदुआ, तिब्बती भेड़िया, लाल लोमड़ी, आइबेक्स, नीली भेड़, हिमालयन स्नोकॉक, गोल्डन ईगल और बेयर्ड गिद्ध जैसी दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं। विशेष रूप से यह क्षेत्र 800 से अधिक नीली भेड़ों का आश्रय स्थल है।
प्रधान मुख्य अरण्यपाल (वन्यजीव) अमिताभ गौतम ने कहा कि इस मान्यता से हिमाचल का ठंडा रेगिस्तान वैश्विक संरक्षण मानचित्र पर मजबूती से उभरेगा। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिम्मेदार इको-टूरिज्म से स्थानीय समुदायों की आजीविका मजबूत होगी और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने के भारत के प्रयासों को नई दिशा और ऊर्जा मिलेगी।