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लेह, 28 सितंबर। लद्दाख की राजधानी लेह से करीब आठ किलोमीटर दूर साबू गांव में शोक का माहौल है। यहां 46 वर्षीय त्सेवांग थारचिन का पार्थिव शरीर घर के बीचों-बीच रखा है और परिवारजन उनके चारों ओर बौद्ध मंत्रों का जाप कर रहे हैं। 24 सितंबर को लेह में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में थारचिन समेत चार लोगों की मौत हो गई थी। प्रदर्शनकारियों की मांग लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार सुनिश्चित करने की थी।
थारचिन 1996 से 2017 तक लद्दाख स्काउट्स में हवलदार रहे और कारगिल युद्ध में तोलोलिंग सेक्टर पर पाकिस्तान के खिलाफ लड़े थे। रिटायर होने के बाद वे लेह में कपड़ों की दुकान चलाने लगे। परिवार का कहना है कि थारचिन के शरीर पर लाठीचार्ज के निशान भी हैं, जिससे आशंका है कि उन्हें गोली मारने से पहले पीटा गया। उनकी पत्नी ने इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए पूछा– “फायरिंग का आदेश किसने दिया? जब भीड़ को रबर बुलेट या आंसू गैस से काबू पाया जा सकता था तो गोली क्यों चलाई गई?”
थारचिन के छोटे भाई, जो पेशे से इंजीनियर हैं, कहते हैं– “जब भी जंग होती है, लद्दाखी सेना के साथ सबसे आगे खड़े होते हैं। लेकिन आज हमें ही देशद्रोही कहा जा रहा है। लोग क्या मांग रहे हैं? बस अपनी जमीन, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर अधिकार। इसका जवाब गोलियों से क्यों दिया गया?”
थारचिन के पिता स्तानजिन नामग्याल भी कारगिल युद्ध के योद्धा रहे हैं और 2002 में सूबेदार मेजर व मानद कैप्टन के पद से रिटायर हुए। बेटे की मौत पर वे कहते हैं– “मेरा बेटा लद्दाख के लिए शहीद हुआ है। उम्मीद है सरकार हमारी आवाज सुनेगी। भारतीय सेना में शामिल होना हमारे खून में है और इस घटना के बावजूद हमारे बच्चे आर्मी जॉइन करेंगे।”