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मंडी, 14 सितंबर। हिमाचल प्रदेश में होनहारों की कमी नहीं है। प्रदेश के युवा देश-विदेश में अपनी सफलता के परचम लहर रहे हैं। आज के दौर में जहां अधिकतर युवा अच्छे पैकेज और नौकरी की तलाश में शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं मंडी जिले के गोहर ब्लॉक के तरौर गांव के जगदीश चंद ने अपनी अलग पहचान बनाई है।
नौकरी की बजाय अपनाई खेती-बाड़ी
फिजिक्स में स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने शहर की नौकरी के बजाय गांव की खेती को अपनाया और प्राकृतिक खेती का ऐसा मॉडल खड़ा किया, जो न केवल उनकी बल्कि अन्य किसानों की जिंदगी भी बदल रहा है।
नाना-नानी से मिली प्रेरणा
जगदीश बचपन से ही अपने नाना-नानी को पारंपरिक तरीके से खेती करते देखते थे। वहीं से उनके मन में खेती के प्रति लगाव पैदा हुआ। पढ़ाई पूरी करने के बाद 2016-17 में उन्होंने तय किया कि वह गांव छोड़कर नौकरी की दौड़ में नहीं लगेंगे।
आसान नहीं था सफर
शुरुआत में उन्होंने पारंपरिक खेती की, लेकिन रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर बढ़ते खर्च और मिट्टी की बिगड़ती सेहत ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया। तभी उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया और अपनी 20 बीघा जमीन में से 10 बीघा पर प्रयोग शुरू किया।
नहीं मानी जगदीश ने हार
शुरुआत आसान नहीं रही। पहले साल पैदावार कम हुई और परिवार व आसपास के लोगों ने शंका भी जताई, लेकिन जगदीश ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत, बीजामृत और घनजीवामृत जैसे जैविक उत्पाद तैयार किए।
संघर्ष से सफलता तक
धीरे-धीरे उनकी फसलों की गुणवत्ता और स्वाद ने बाजार में अलग पहचान बनाई। मटर, लहसुन और सब्जियों की बढ़ती मांग ने उनकी मेहनत को सही साबित किया। आज उनकी उपज न केवल अच्छे दाम ला रही है, बल्कि वे आसपास के किसानों के लिए प्राकृतिक खेती के मार्गदर्शक बन गए हैं।
किसान से उद्यमी बने जगदीश
साल 2025 में कृषि विभाग ने उनकी लगन को देखते हुए उन्हें सामुदायिक स्रोत व्यक्ति (सीआरपी) चुना। राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से उन्हें 25 हजार रुपए की पहली किस्त मिली, जिससे उन्होंने अपने घर पर ही एक छोटी प्रयोगशाला तैयार की। अब जगदीश की मदद से दूसरे किसान भी लाखों की कमाई कर रहे हैं।
हो रही अच्छी-खासी आमदनी
इस केंद्र से वे किसानों को बेहद कम दामों पर जैविक उत्पाद उपलब्ध करवा रहे हैं। अब उनकी आमदनी खेती के साथ-साथ इन उत्पादों की बिक्री से भी हो रही है। साथ ही, जगदीश ने पशुपालन को भी आय का मुख्य स्रोत बनाया है। उनकी गायें पूरी तरह रसायन मुक्त चारा खाती हैं और उनसे मिलने वाला दूध भी शुद्ध व पौष्टिक है। इससे उन्हें और उनके परिवार को स्थाई आर्थिक सुरक्षा मिली है।
जगदीश के साथ जुड़े कई किसान
जिला परियोजना उप निदेशक डॉ. हितेंद्र सिंह के अनुसार मंडी जिले में अब तक 50 प्राकृतिक खेती क्लस्टर और 33 जैव आदान संसाधन केंद्र स्थापित हो चुके हैं। इनके लिए 100 सीआरपी चुने गए हैं, जो गांव-गांव जाकर किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। जगदीश जैसे युवाओं से प्रेरित होकर अब गोहर ब्लॉक के ही 2,500 से अधिक किसान प्राकृतिक खेती से जुड़े हैं।
युवाओं के लिए मिसाल
जगदीश चंद की कहानी इस बात का सबूत है कि मजबूत इरादे और मेहनत से गांव की मिट्टी में भी सुनहरा भविष्य लिखा जा सकता है। उन्होंने दिखाया कि प्राकृतिक खेती न केवल किसान की आय बढ़ा सकती है, बल्कि पर्यावरण, मिट्टी और समाज के स्वास्थ्य के लिए भी वरदान है।
