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नई दिल्ली/शिमला। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू इन दिनों दिल्ली में डटे हुए हैं और लगातार केंद्रीय नेताओं व वित्त आयोग से मुलाकात कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं से बेहाल प्रदेश के लिए राहत पैकेज और राजस्व घाटा अनुदान की मांगों के बीच सीएम सुक्खू ने अब केंद्र की मोदी सरकार के सामने एक और बड़ी मांग रख दी है। उन्होंने हिमाचल जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील पहाड़ी राज्य के लिए हर साल 50,000 करोड़ रुपये का विशेष ग्रीन फंड देने की अपील की है।
आपदा राहत नहीं, सतत विकास के लिए फंड
मुख्यमंत्री सुक्खू ने 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगड़िया से भेंट के दौरान यह मांग रखी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह राशि आपदा राहत के लिए नहीं, बल्कि हिमाचल के सतत विकास, जलवायु परिवर्तन से निपटने, हरित क्षेत्र संरक्षण, वन्य संपदा के संवर्धन और पर्यावरणीय क्षति की भरपाई के लिए होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह फंड विशेष केंद्रीय सहायता या एक समर्पित योजना के तहत दिया जा सकता है।
67% भूमि वन क्षेत्र, राजस्व जुटाना चुनौती
सीएम ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की 67% से अधिक भूमि वन क्षेत्र में आती है, ऐसे में राजस्व जुटाने की सीमाएं हैं। बावजूद इसके राज्य को संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होता है। उन्होंने आग्रह किया कि केंद्र को हिमाचल की पर्यावरणीय भूमिका को मान्यता देते हुए ग्रीन फंड उपलब्ध कराना चाहिए।
प्राकृतिक आपदाओं से 15,000 करोड़ का नुकसान
सीएम सुक्खू ने आयोग को बताया कि पिछले तीन वर्षों में हिमाचल प्रदेश ने लगातार विनाशकारी आपदाओं का सामना किया है। इससे 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है और सैकड़ों जानें गई हैं। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों की परिस्थितियां मैदानी इलाकों से अलग हैं, इसलिए आपदा जोखिम सूचकांक (डीआरआई) को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है।
राजस्व घाटा अनुदान और विशेष मान्यता की मांग
मुख्यमंत्री ने राजस्व घाटा झेल रहे पर्वतीय राज्यों के लिए अनुदान की निरंतरता पर जोर देते हुए इसकी न्यूनतम राशि 10,000 करोड़ रुपये सालाना तय करने का भी सुझाव दिया। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों और वृक्ष-रेखा से ऊपर स्थित इलाकों को भी पर्यावरणीय दृष्टि से घने जंगलों की श्रेणी में शामिल करने की मांग रखी।
