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हिमाचल: अवैध कब्जों पर हाई कोर्ट का बड़ा आदेश, 23 वर्ष पुरानी नीति रद्द, 6 माह में चलेगा बुलडोजर

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शिमला,05 अगस्त।  हिमाचल प्रदेश में 1 लाख 65 हजार आवदकों को झटका लगा है.प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार के पांच बीघा भूमि नियमितीकरण वाली नीति को खारिज कर दिया है. 23 साल पुरानी इस नीति को लेकर मंगलवार को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का अहम फैसला सुनाया और सरकार की नीति को खारिज कर दिया है. अहम बात है कि हाईकोर्ट ने 28 फरवरी 2026 तक सरकारी भूमि से अवैध कब्जों को हटाने के आदेश जारी किए हैं.

न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ में मंगलवार को याचिका पर सुनवाई हुई.
दरअसल, अवैध कब्जों के नियमितीकरण नीति के तहत सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों लोगों से उस समय की भाजपा सरकार ने आवेदन मांगे थे. इस दौरान एक लाख पैंसठ हजार लोगों ने अवैध कब्जों को नियमित करने का आवेदन किया था. साल 2002 में भाजपा सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में संशोधन कर धारा 163-ए जोड़ा था और अब इसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. इस धारा के तहत लोगों को पांच से 20 बीघा तक जमीन देने और नियमितीकरण करने का का प्रावधान किया गया था।

गौरतलब है कि जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने इससे पहले 8 जनवरी को मामले पर सुनवाई की थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस फैसले को याचिकाकर्ता पूनम गुप्ता की ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.

44 पेज के फैसले में आदेश

कोर्ट ने अपने 44 पेज के फैसले में कहा कि यह धारा पूरी तरह से मनमानी और संविधान के अनुरूप नहीं है. इसके चलते हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-A और उससे संबंधित बनाए गए सभी नियम अब रद्द माने जाएंगे. कोर्ट ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि वह सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए “क्रिमिनल ट्रेसपास” (दंडनीय अतिक्रमण) से संबंधित कानून में संशोधन करे, जैसा कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा जैसे राज्यों ने किया है.  कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि राज्य सरकार सरकारी जमीन पर से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया कानून के तहत तत्काल शुरू करे और इसे 28 फरवरी 2026 तक हर हाल में पूरा करे और कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस याचिका के कारण अगर किसी को अतिक्रमण हटाने से मिली कोई राहत या सुरक्षा है, तो वह भी अब समाप्त मानी जाएगी।

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