हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार को लगाई फटकार - 5 लाख रुपए लगाया जुर्माना, जानें पूरा मामला

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शिमला, 20 जून। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश की सुक्खू सरकार को बड़ी फटकार लगाते हुए उस पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार देने के मामले में दायर जनहित याचिका का समय रहते जवाब न देने पर लगाया गया है। कोर्ट ने सुक्खू सरकार को जुर्माने के 5 लाख रुपए 25 जून तक जमा करवाने के आदेश दिए हैं। यह राशि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पास की जाएगी।

रेरा नियुक्ति को लेकर भी तल्ख टिप्पणी

हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियों में देरी को लेकर भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि 25 जून तक रेरा के अध्यक्ष और शेष सदस्य की अधिसूचना जारी की जाए।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तलख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार न्यायिक व्यवस्था से लुकाछिपी का खेल खेल रही है। कभी रेरा मुख्यालय को धर्मशाला स्थानांतरित करने का बहाना बनाया गया, तो कभी नियुक्ति प्रक्रिया पर विचाराधीन होने की बात कही गई। सरकार की इस टालमटोल को कोर्ट ने गंभीरता से लिया और खेद जताया कि 9 मई को पूछे गए प्रश्न का भी संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया।

चीफ सेक्रेटरी के सेवा विस्तार पर सवाल

जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता अतुल शर्मा ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को 6 महीने का सेवा विस्तार दिए जाने को चुनौती दी है। उनका कहना है कि 28 मार्च 2025 को केंद्र सरकार द्वारा सक्सेना को 30 सितंबर, 2025 तक सेवा में बनाए रखने का निर्णय लिया गया, जबकि उनके खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामला लंबित है। याचिका के अनुसार दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने 21 अक्टूबर 2019 को प्रबोध सक्सेना के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम के तहत दायर सीबीआई के आरोप पत्र पर संज्ञान लिया था। इतना ही नहीं, 23 जनवरी 2025 को  सीबीआई ने पत्र लिखकर इसकी पुष्टि भी की कि मामला अभी लंबित है।

डाउटफुल इंटीग्रिटी में क्यों नहीं डाला अधिकारी का नाम
याचिकाकर्ता ने सवाल उठाया है कि जब प्रबोध सक्सेना के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है, तो उनका नाम डाउटफुल इंटीग्रिटी वाले अधिकारियों की सूची में क्यों नहीं है। यह सीधे तौर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 123 और डीओपीटी के दिशा.निर्देशों का उल्लंघन माना जा रहा है। यह भी आरोप लगाया गया कि सरकार ने सेवा विस्तार से पहले न तो सेंट्रल विजिलेंस कमीशन और न ही राज्य सतर्कता या कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से अनिवार्य परामर्श लिया। इस प्रक्रिया की अनदेखी से केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा.निर्देशों की अवहेलना हुई है।

प्रशासनिक सुधार समिति की चेतावनी का हवाला

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि संसद की प्रशासनिक सुधारों पर बनी समिति ने पहले ही चेताया है कि भ्रष्टाचार में संलिप्त अधिकारियों को बचाने के लिए सेवा विस्तार का दुरुपयोग हो रहा है। यह मामला उस चेतावनी की पुष्टि करता है।

25 जून को होगी सुनवाई

हिमाचल हाईकोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 25 जून को होगी। जिसमें मुख्य सचिव के सेवा विस्तार पर अंतरिम राहत देने या न देने पर विचार किया जाएगा। इसी दिन रेरा की अधिसूचना पर अनुपालन रिपोर्ट भी कोर्ट में प्रस्तुत करनी होगी।

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