सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि शिक्षा विभाग के छह कर्मचारियों समेत 31 को अभियुक्त बनाया गया है। इनमें चार बैंक कर्मचारी भी हैं। इनके खिलाफ 7 मामलों में अदालत के समक्ष चार्जशीट दायर की गई है। हालांकि, अदालत ने इस रिपोर्ट पर असहमति जताई है। मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने सीबीआई को तीन हफ्ते में दोबारा स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए हैं।
रिपोर्ट के माध्यम से अदालत को बताया गया है कि 295 शैक्षणिक संस्थानों ने 90 फीसदी छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया था। 25 संस्थानों ने 38.23 करोड़ से 82.84 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति प्राप्त की है। 12 संस्थानों की जांच चल रही है। इसे पूरा करने के लिए कम से कम छह महीने का समय लगेगा। इस पर हाईकोर्ट ने असंतोष जताया।
अदालत ने सीबीआई को आदेश दिए थे कि वह जांच पूरा करने के बारे में निर्धारित तिथि बताएं। प्रार्थी ने जनहित में दायर याचिका में छात्रवृत्ति घोटाले के संबंध में दैनिक समाचार पत्रों में छपी खबरों को संलग्न किया है। इस बारे में हुई प्रारंभिक जांच में सीबीआई ने बड़ा खुलासा किया है।
केंद्रीय जांच एजेंसी को छानबीन में पता चला है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों और निजी शिक्षण संस्थानों में छात्रवृत्ति हड़पने के लिए बाकायदा एक रैकेट चल रहा था। इसके लिए अधिकारी निजी शिक्षण संस्थानों को छात्रवृत्ति जारी करने के लिए 10 फीसदी तक कमीशन लेते थे। यह कमीशन का खेल होटलों में चलता था। यहां पर स्कॉलरशिप जारी कराने की एवज में निजी संस्थान विभाग के अधिकारियों को कमीशन का पैसा देते थे। निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी छात्रवृत्ति फाइलों पर अपने स्तर पर ही निर्णय लेते थे। जांच में यह भी पता चला है कि नियमों के विपरीत निजी ई-मेल आईडी से छात्रवृत्ति के काम को अंजाम दिया जाता था।