हिमाचल एक शांत और भाईचारे से रहने वाले लोगों का प्रदेश था। लेकिन पिछले कुछ सालों में हिमाचल की आबोहवा लगातार बिगड़ती जा रही है।जहां हिमाचल में 2019 से पहले शून्य के बराबर जाति आधारित अत्याचार होते थे। आज वह अत्याचार दिन दुगनी व रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ते जा रहे है। सरकार पुलिस और प्रशासन मूक दर्शक बने तमाशा देख रहे है। जोकि अपने आप में सबसे बड़ी समस्या है।
भारत का संविधान और कानून सभी नागरिकों को समान रूप से मान सम्मान और प्रनिधित्व का अधिकार देता है। लेकिन यहां एक ऐसी जमात पैदा हो गई है जो संविधान के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए प्रदेश के दलितों के अधिकार छिनने और उनको जाति के आधार पर प्रताड़ित करने की आजादी चाहते है। उनका सवाल है कि जब जाति आधार पर आरक्षण मिल सकता है तो जातिसूचक शब्द क्यों ना बोले जाएं। इस कारण के चलते उन्होंने बाकायदा भारतीय संविधान में किए गए संवैधानिक प्रावधान "आरक्षण" और भारतीय कानून "एससी एसटी एक्ट" की अर्थी यात्रा निकाली। यह सभी ने देखा और मीडिया चैनलों ने भी दिखाया कि कैसे पुलिस की मौजूदगी में अर्थी बनाई गई और उसको प्रदेश भर में घुमाया गया। सरेआम कानून का अपमान किया गया और पुलिस, प्रशासन और सरकार जांच के नाम पर प्रदेश के 32 प्रतिशत दलितों को आज भी बेबकुफ बनाए हुए है।
इस सबको देख कर भड़के दलित संगठनों के नेताओं ने "हिन्दू धर्म" के त्याग की घोषणा कर दी। उनका कहना था कि स्वर्ण आयोग बनाओ, हमें कोई आपत्ति नही है। लेकिन हम भारतीय कानून और संविधान का अपमान सहन नही करेंगे। सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह यहां पुलिस, प्रशासन और सरकार पर उठता है। ना तो किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई ना ही किसी को कोई फर्क पड़ा कि हिंदुओं द्वारा दलित हिंदुओं की भावनाओं से खेला जा रहा है। जबकि पुलिस, प्रशासन और सरकार में बैठे अधिकारी संविधान की शपथ लेकर संविधान और कानून की रक्षा व पालन के लिए वचनबद्ध है।
स्वर्ण आयोग की मांग कर रहे लोगों ने मीडिया के सामने काट देने, मार देने व घरों में घुस का अत्याचार करने की धमकियां दी। लेकिन हुआ क्या? पुलिस, सरकार व प्रशासन महज दो आदमियों को रोकने में बुरी तरह नाकाम हुए है। दो आदमियों ने पूरे प्रदेश में जातिवाद की आग लगा दी। जो प्रदेशवासी एक दूसरे को मान सम्मान की दृष्टि से देखते थे। वही प्रदेशवासी आज एक दूसरे को जानवरों की तरह देख रहे है। सभी लोग दुश्मनी की आग में जलते नजर आ रहे है। अगर यह आग यूं ही बढ़ती रही तो यह तय है कि आने वाले समय में हिमाचल में जातीय दंगे और हिंसा भड़केगी।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह सब हिमाचल प्रदेश वे नेताओं के इशारों पर हो रहा है। कुछ बड़े बड़े नेता फंडिंग कर रहे है और इस आग को बढ़ावा दे रहे है। क्योंकि अगर ऐसा नही होता तो मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक खुद सामने आकर कार्यवाही करवाते। ताकि प्रदेश में संविधान के विरुद्ध देश की एकता एवं अखंडता को तोड़ने वालों को जेल में डालते। जरूरी नही वह एक ही पक्ष के लोग हो। यह कार्यवाही दोनों पक्षों के खिलाफ अमल में लाई जा सकती थी। लेकिन यह सब नही हुआ जिससे एक बात निकल कर सामने आ रही है कि 2022 के चुनावों के लिए मुद्दे खत्म हो चुके है तो अब हिमाचल में 2022 का चुनाव जातिवाद फैला कर जितने की तैयारियां हो रही है।
आपको बता दें कि हिमाचल मेंसरकारी नौकरियों में हजारों की संख्या में पद खाली है। बिना आरक्षण का विरोध किए, महज सरकारी पदों को भरने की मांग उठा कर लाखों लोगों को नौकरियां दिलाई जा सकती है। लेकिन मुठ्ठी भर लोगों में अपने निजी हित साधने के लिए पूरे प्रदेश को जटिवाद की आग के हवाले कर दिया है। जोकि किसी भी तरह से संविधान के अनुसार नही है और सरकार में बैठे नेताओं की चुप्पी सीधे सीधे आने वाले समय में प्रदेश की जनता के खिलाफ एक बड़े षडयंत्र की ओर इशारा कर रही है।