चैहार घाटी का यह इलाका पुराने समय से ही नमक और चूने के भंडार हुआ करता था। गुम्मा से लेकर द्रंग तक नमक और चूने के भंडार है। गुम्मा(Gumma) का नमक प्रदेश व देश भर में प्रसिद्ध है। गुम्मा व द्रंग दोनों जगह नमक व चूने वाला पानी निकलता है। जब भी चूने के पानी वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के सम्पर्क में आता है तो पानी का रंग दूधिया हो जाता है। यह एक रासायनिक प्रक्रिया है, कोई चमत्कार नहीं। साइंस में यह चीज़ अक्सर पढ़ाई जाती है। अगर चूने के पानी में से कार्बन डाइऑक्साइड गैस गुजारी जाए तो पानी का रंग दूधिया हो जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड एक रंगहीन व गन्धहीन गैस है। धरती पर यह गैस प्राकृतिक रूप से पायी जाती है। वायुमण्डल में यह गैस लगभग 0.03 से 0.04 प्रतिशत पाई जाती है। यही नहीं यह गैस पृथ्वी पर जीवन के लिये अति आवश्यक है। सामान्य तापमान व दबाव पर यह गैसीय अवस्था में रहती है। इसे अगर विज्ञान की भाषा में समझे तो कहा जाएगा कि चूने के दो प्रकार होते हैं। बुझा हुआ चूना और बिना बुझा हुआ चूना।
विज्ञान(Science) में बिना बुझे हुए चूने को कैल्शियम ऑक्साइड और बुझे हुए चूने को कैल्शियम हाइड्रोक्साइड कहा जाता है। चूने का पानी भी कैल्शियम हाइड्रोक्साइड ही कहलाता है। जब चूने के पानी में से कार्बन डाइऑक्साइड गैस गुजारी जाती है तो रिएक्शन होता है। रिएक्शन में कार्बन चूने में मौजूद कैल्शियम की जगह ले लेता है। रिएक्शन के बाद कैल्शियम कार्बोनेट और पानी बनता है। कैल्शियम कार्बोनेट का रंग सफेद होता है और इस वजह से पानी दूधिया दिखाई देता है। इस कैल्शियम कार्बोनेट को क्रिस्टल या प्रेसिपिटेट कहा जाता है। लेकिन जब यह पानी बह रहा होता है तो कैल्शियम कार्बोनेट जमीन की सतह पर रह जाता है।
ये वही प्रेसिपिटेट हैं जिन्हें चैहार घाटी में लोग दूध से दहीं बनना बता रहे हैं। लेकिन हकीकत ये है कि न तो वो कोई दूध है और न ही कोई दूध से बनी दही। यह एक रासायनिक प्रक्रिया है। लेकिन साइंस का ज्ञान न होने के कारण लोग इसे चमत्कार का नाम दे रहे हैं। यह एक अव्यवहारिक बात है और कहीं न कहीं इससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिल रहा है।