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हिमाचल की इस बड़ी यूनिवर्सिटी ने प्रोफेसर किया सस्पेंड, कर रहा था गलत हरकतें

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सोलन, 22 दिसंबर। शिक्षक से न केवल पढ़ाने की उम्मीद होती है, बल्कि अनुशासन, जिम्मेदारी और संस्थान की गरिमा बनाए रखने की भी। जब यही कसौटी पूरी न हो, तो संस्थान को सख्त फैसला लेना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश के नौणी स्थित डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय ने ऐसा ही एक कदम उठाते हुए एक असिस्टेंट प्रोफेसर को सेवा से हटा दिया है, जिन पर कार्यशैली और आचरण को लेकर गंभीर सवाल खड़े हुए थे।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि प्रोबेशन (परीक्षा अवधि) पर तैनात असिस्टेंट प्रोफेसर (प्लांट फिजियोलॉजी) डॉ. संजीव कुमार सन्याल का कार्य और आचरण संतोषजनक नहीं पाया गया। इसी कारण विश्वविद्यालय के उच्च स्तर पर निर्णय लेकर उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। इस संबंध में विश्वविद्यालय के उपकुलपति की ओर से लिखित आदेश जारी किए गए हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब डॉ. सन्याल पर कार्रवाई हुई हो। इससे पहले उन्हें सस्पेंड भी किया जा चुका था। अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके खिलाफ और सख्त कदम उठाते हुए उन्हें पूरी तरह बर्खास्त कर दिया है। यह फैसला हाल ही में हुई विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट-कम-नियुक्ति प्राधिकारी की 121वीं बैठक में लिया गया।

विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार, प्रोबेशन अवधि के दौरान डॉ. संजीव कुमार सन्याल पर कई गंभीर आरोप लगे। इन सभी आरोपों की विभागीय जांच करवाई गई, जिसमें आरोप सही पाए गए। इनमें शामिल हैं-

उच्च अधिकारियों के वैध आदेशों की अनदेखी
बिना आधार के आरोप लगाना
अनुशासनहीनता और अवज्ञा
संस्थान के शैक्षणिक और अनुसंधान माहौल को नुकसान पहुंचाना

आदेश के अनुसार, डॉ. संजीव कुमार सन्याल की नियुक्ति 29 जनवरी 2021 को संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) आधार पर की गई थी। उस समय उन्हें 30,600 रुपये मासिक मानदेय मिलता था।

बाद में राज्य सरकार की नीति के तहत 7 जून 2024 को उनकी सेवाएं नियमित की गईं और उन्हें दो साल की प्रोबेशन अवधि पर रखा गया, जो 6 जून 2026 तक थी। लेकिन इस अवधि के दौरान उनका कार्य और व्यवहार संतोषजनक नहीं पाया गया।

प्रशासन के अनुसार, प्रोबेशन के दौरान उनके खिलाफ दो अलग-अलग चार्जशीट जारी की गईं। इसके बाद उन्हें 13 फरवरी 2025 को निलंबित कर दिया गया।निलंबन की अवधि को समय-समय पर बढ़ाया गया और वे अब तक निलंबन में ही थे। उनके खिलाफ विभागीय जांच केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1965 के तहत की गई। जांच में सभी आरोप प्रमाणित पाए गए।

विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि डॉ. संजीव कुमार सन्याल ने अपने निलंबन और चार्जशीट के खिलाफ हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में तीन बार याचिकाएं दायर कीं। हालांकि, हाईकोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद वे किसी भी विभागीय जांच में शामिल नहीं हुए। प्रशासन ने इसे उनका “अवज्ञाकारी और बाधा डालने वाला रवैया” बताया है।

विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि नियमों के अनुसार, यदि प्रोबेशन अवधि के दौरान किसी कर्मचारी का कार्य और आचरण संतोषजनक न हो, तो उसकी सेवाएं बिना किसी नोटिस के समाप्त की जा सकती हैं। इसे दंडात्मक कार्रवाई नहीं माना जाता। इन्हीं नियमों के आधार पर विश्वविद्यालय ने डॉ. संजीव कुमार सन्याल की सेवाएं समाप्त करने का फैसला लिया।

हालांकि नियमों के अनुसार, डॉ. संजीव कुमार सन्याल को एक महीने के वेतन और भत्तों के बराबर राशि दी जाएगी, जो उन्हें आदेश जारी होने से पहले मिल रही थी।

विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि यह कदम संस्थान में अनुशासन, बेहतर कार्य संस्कृति और स्वस्थ शैक्षणिक माहौल बनाए रखने के लिए उठाया गया है।

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