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हिमाचल: IGMC शिमला में छुट्टी पर डॉक्टर, एम्बुलेंस कर्मचारियों की हड़ताल, मरीज परेशान

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न्यूज अपडेट्स 
शिमला, 26 दिसंबर। हिमाचल  प्रदेश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था IGMC में आज स्वास्थ्य सेवाएं गंभीर संकट से गुजर रही हैं। एक ओर जहां डॉक्टरों ने सामूहिक आकस्मिक अवकाश लेकर कामकाज ठप कर दिया है, वहीं दूसरी ओर प्रदेशभर में 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं से जुड़े कर्मचारी भी हड़ताल पर चले गए हैं। ऐसे में इलाज के लिए अस्पतालों पर निर्भर हजारों मरीजों की परेशानियां बढ़ना तय माना जा रहा है।

IGMC शिमला में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राघव नरूला की सेवा समाप्ति के विरोध में आज डॉक्टर सामूहिक आकस्मिक अवकाश (Mass Casual Leave) पर हैं। इस अवकाश में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (RDA), कंसल्टेंट्स, सीनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (CSA) और SAMDCOT से जुड़े डॉक्टर शामिल हैं।

डॉक्टर संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह विरोध सिर्फ एक दिन का नहीं है। अगर  27 दिसंबर को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के साथ प्रस्तावित बैठक में कोई ठोस समाधान नहीं निकलता, तो IGMC में अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी जाएगी। ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर न केवल शिमला बल्कि पूरे प्रदेश से आने वाले मरीजों पर पड़ेगा।

डॉक्टरों की सामूहिक छुट्टी के चलते IGMC में ओपीडी सेवाएं, नियमित जांचें और वैकल्पिक सर्जरी लगभग ठप रहने की संभावना है। अस्पताल प्रशासन ने आपातकालीन सेवाएं सीमित स्तर पर जारी रखने की बात कही है, लेकिन मरीजों की संख्या अधिक होने के कारण व्यवस्थाएं चरमराने की आशंका बनी हुई है।

सुबह से ही IGMC पहुंचने वाले कई मरीजों को डॉक्टरों की अनुपस्थिति के कारण निराश लौटना पड़ सकता है। खासकर दूर-दराज़ के इलाकों से आए मरीजों और बुजुर्गों के लिए यह स्थिति बेहद मुश्किल भरी साबित हो सकती है। डॉक्टर संगठनों ने लोगों से अपील की है कि जब तक अत्यंत आवश्यक न हो, आज इलाज के लिए IGMC आने से बचें।

दरअसल, 22 दिसंबर को IGMC में डॉक्टर और मरीज के बीच हुई मारपीट की घटना के बाद सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राघव नरूला की सेवा समाप्ति के आदेश जारी कर दिए थे। यह फैसला मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के हस्तक्षेप के बाद लिया गया।

इसी कार्रवाई के विरोध में डॉक्टर संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। डॉक्टरों का कहना है कि डॉ. राघव नरूला को बिना निष्पक्ष जांच और सभी पक्षों को सुने एकतरफा तरीके से बर्खास्त किया गया।

संगठनों का आरोप है कि जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई और सीधे सेवा समाप्ति का आदेश देकर पूरे डॉक्टर समुदाय का मनोबल तोड़ा गया है। डॉक्टरों ने सरकार से मांग की है कि डॉ. नरूला की सेवा समाप्ति का आदेश तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाए और मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए।

इसी बीच स्वास्थ्य सेवाओं पर दूसरा बड़ा झटका तब लगा, जब प्रदेशभर में 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों ने 48 घंटे की हड़ताल शुरू कर दी। कर्मचारियों ने बीती रात से काम बंद कर दिया है, जिससे आपातकालीन मरीजों तक समय पर एंबुलेंस पहुंचना मुश्किल हो सकता है।

हालांकि सरकार ने पहले ही एंबुलेंस सेवाओं पर आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (ESMA) लागू कर रखा है, लेकिन इसके बावजूद कर्मचारी अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। यूनियन नेताओं का कहना है कि लंबे समय से कर्मचारियों का शोषण हो रहा है, वेतन और सुविधाओं से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज किया जा रहा है, जिससे मजबूरी में उन्हें हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ा।

यूनियन में भी मतभेद, IGMC एंबुलेंस यूनियन अलग
इस हड़ताल को लेकर यूनियनों में भी मतभेद सामने आए हैं। IGMC एंबुलेंस सेवा इंटक यूनियन के अध्यक्ष पूर्ण चंद ने इस हड़ताल से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि एंबुलेंस कर्मियों से जुड़ा मामला फिलहाल हाईकोर्ट में विचाराधीन है और यूनियन किसी भी तरह की हड़ताल का समर्थन नहीं करती।

एक ही दिन में डॉक्टरों की सामूहिक छुट्टी और एंबुलेंस कर्मियों की हड़ताल ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को गंभीर चुनौती के सामने ला खड़ा किया है। अगर सरकार और डॉक्टर संगठनों के बीच जल्द समाधान नहीं निकला, तो आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ सकते हैं। इसका खामियाजा सीधे आम जनता और मरीजों को भुगतना पड़ सकता है।

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