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शिमला, 02 नवंबर। हिमाचल प्रदेश में आगामी पंचायत व नगर निकाय चुनाव को लेकर सरकार और चुनाव आयोग के बीच जारी खिंचाव ने चुनावी स्थिरता पर संशय पैदा कर दिया है। स्टेट इलेक्शन कमीशन ने दिसंबर-जनवरी में प्रस्तावित चुनावों के मद्देनजर सभी जिलाधिकारियों (डीसी) को असिस्टेंट रिटर्निंग ऑफिसर, पोलिंग ऑफिसर तथा संबंधित ऑफिसर, व्हीकल, मीडिया सेल, कंट्रोल रूम और मतगणना के लिए बिल्डिंग पहचान करने के निर्देश जारी किए हैं। आयोग के आदेशों का तात्पर्य यह है कि चुनाव की तैयारियाँ अब तिव्र गति से पूरी की जाएँ ताकि समय पर चुनाव कराए जा सकें।
इसी बीच पंचायतीराज विभाग ने अचानक पंचायतों के री-ऑर्गेनाइजेशन के प्रस्तावों का निबंधन तेज कर दिया है। विभाग ने सभी डीसी को पत्र लिखकर 15 दिन के भीतर री-ऑर्गेनाइज के लंबित प्रस्तावों का परीक्षण कर निदेशालय को भेजने के निर्देश दिए हैं। इससे स्पष्ट टकराव खड़ा हो गया है — अगर पंचायतों का पुनर्गठन अंतिम रूप से लागू किया गया तो इलेक्शन कमीशन द्वारा निर्धारित समय पर चुनाव कराना मुश्किल हो सकता है।
आधिकारिक स्रोतों के अनुसार, पंचायतीराज विभाग ने पिछले वर्ष से ही कई पंचायतों के री-ऑर्गेनाइजेशन के प्रस्तावों पर काम किया और अधिकांश को पूरा कर लिया गया था। परंतु कुछ प्रस्ताव अभी भी लंबित थे, जिन्हें इस वर्ष जुलाई-सितंबर की आपदा से प्रभावित जिला प्रशासन की व्यस्तताओं के कारण लंबित रखा गया था। अब इन प्रस्तावों के अंतिम निपटान के साथ नई सीमांकन-परिसीमन लागू होने की स्थिति बन सकती है, जिससे वोटर लिस्ट और आरक्षण रोस्टर में समायोजन आवश्यक होगा।
स्टेट इलेक्शन कमीशन के अनिल खाची ने पहले ही सरकार से पंचायतों के री-ऑर्गेनाइजेशन के संदर्भ में समयबद्ध कार्रवाई की बात कही थी, ताकि चुनाव समय पर सम्भव हो सकें। परंतु सरकार की ओर से अचानक उठाए गए कदमों ने आयोग की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये विवाद इसलिए भी संवेदनशील हैं क्योंकि 3577 पंचायतों में प्रधान, उप-प्रधान, वार्ड मेंबर, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद के चुनाव इसी साल दिसंबर में कराए जाने हैं; साथ ही 73 नगर निकायों (नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम) में भी मतदान प्रस्तावित है।
वोटर लिस्ट का काम फिलहाल अंतिम चरण में है, पर अगर पंचायतों के पुनर्गठन का निर्णय अंतिम रूप से लागू हो गया तो कई मतदाताओं के हिस्से-क्षेत्र बदल सकते हैं और आरक्षण रोस्टर को पुनः तैयार करना पड़ेगा। हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार आरक्षण रोस्टर 90 दिन पहले जारी होना होता है, पर अभी तक रोस्टर का अंतिम रूप नहीं आया है — यही बात विपक्ष के निशाने पर है।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने मुख्यमंत्री से सवाल किया है कि क्या सरकार वास्तव में चुनाव समय पर कराएगी। ठाकुर का आरोप है कि बार-बार की तरह इस बार भी चुनावों के समय पर कराए जाने को लेकर अनिश्चितता है और सरकार के री-ऑर्गेनाइजेशन के अंतिम-घंटे के फैसले से चुनाव पर सवाल खड़ा हो गया है। वहीं, प्रशासन की दलील है कि री-ऑर्गेनाइजेशन के लंबित प्रस्तावों का निपटान आवश्यक है ताकि चुनावें निष्पक्ष और सुव्यवस्थित हों।
इलेक्शन कमीशन 15 नवंबर के बाद कभी भी चुनाव की तिथि घोषित कर सकता है और आयोग ने स्थानीय स्तर पर पोलिंग व्यवस्था, कंट्रोल रूम और मीडिया-सेल की तैयारियों को अंतिम रूप देने के निर्देश दे दिए हैं। दूसरी ओर, सरकार ने डीसी को निर्देश दिए हैं कि वे 25 सितंबर तक आरक्षण रोस्टर लगाने के आदेश भी सुनिश्चित करें। इस दोनों मोर्चों पर जारी गतिरोध से यह स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर तीव्र चर्चाएँ और संभवतः कानूनी पहलें देखने को मिल सकती हैं।
कुल मिलाकर, पंचायतों के पुनर्गठन और चुनाव आयोग की समयसीमा के बीच टकराव ने हिमाचल के स्थानीय शासन-चक्र के भविष्य पर अनिश्चितता पैदा कर दी है; अब देखना यह है कि सरकार-आयोग किस प्रकार तालमेल बैठाकर चुनावों को समय पर सुनिश्चित करते हैं।
