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कांगड़ा, 10 अक्टूबर। कभी कर्मचारियों के अधिकारों की आवाज बुलंद करने वाले एचआरटीसी (HRTC) के कर्मठ यूनियन लीडर राजिंदर कुमार आज खुद जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। जो शख्स हमेशा दूसरों के हक की लड़ाई में आगे रहता था, वही आज अपने अधिकारों और जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है।
एचआरटीसी पालमपुर डिपो में कार्यरत राजिंदर कुमार का जीवन पिछले एक दशक में पूरी तरह बदल गया। वर्ष 2015 में जब उन्होंने अपनी नई नैनो कार खरीदी थी, तब शायद उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वही गाड़ी उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत बन जाएगी।
गाड़ी खरीदने के कुछ ही समय बाद उनके पिता गंभीर रूप से बीमार पड़ गए, जिससे वे समय पर गाड़ी की आरसी (RC) नहीं बनवा पाए। इसी बीच एचआरटीसी यूनियन की शिमला में एक बैठक तय हुई। कार्यकारिणी सदस्यों के आग्रह पर राजिंदर कुमार ने अपनी बिना पंजीकृत गाड़ी में साथियों को शिमला ले जाने की हामी भर दी, हालांकि उन्होंने बार-बार गाड़ी के अधूरे दस्तावेजों को लेकर चिंता जताई थी।
दुर्भाग्यवश, शिमला जाते वक्त हमीरपुर के पास गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस भीषण हादसे में दो यूनियन सदस्यों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि राजिंदर कुमार बाल-बाल बच गए। इसके बाद उनके जीवन का सबसे कठिन अध्याय शुरू हुआ।
बीमा कंपनी ने यह कहकर 1.5 करोड़ रुपये का दावा देने से इंकार कर दिया कि गाड़ी का पंजीकरण नहीं था। अदालत ने क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी गाड़ी के मालिक राजिंदर कुमार पर डाल दी। लगभग दस साल चले इस कानूनी संघर्ष के बाद अब उनके घर की कुर्की के आदेश जारी हो चुके हैं।
दुख की बात यह है कि जिनके लिए उन्होंने हमेशा आवाज उठाई, वही अब उनके साथ नहीं हैं। साथी एक-एक कर दूर हो गए और अब मानसिक तनाव से जूझते हुए राजिंदर कुमार खुद बीमारी की हालत में हैं। बताया जा रहा है कि वर्तमान में उन्हें वेतन भी नहीं मिल रहा है, जिससे उनका आर्थिक संकट और गहराता जा रहा है।
कभी सैकड़ों कर्मचारियों की उम्मीद बने राजिंदर कुमार आज खुद उम्मीद की डोर थामे हुए हैं। यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की भी है जहाँ हक़ की लड़ाई लड़ने वाले अक्सर अंत में अकेले रह जाते हैं।
