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गया (बिहार), 13 अक्टूबर। गया जिले के गुरारू प्रखंड के कोंचा गांव में एक अनोखी घटना ने सभी को हैरान कर दिया। यहां भारतीय वायुसेना के पूर्व वारंट अधिकारी 74 वर्षीय मोहन लाल ने जिंदा रहते अपनी अंतिम यात्रा निकलवाई। इसका मकसद था यह जानना कि मरने के बाद उनकी अंतिम यात्रा में कितने लोग शामिल होंगे।
मोहन लाल की इस अनोखी “जीवित शव यात्रा” में सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए। बैंड-बाजे के साथ “राम नाम सत्य है” के नारे लग रहे थे और साउंड सिस्टम पर “चल उड़ जा रे पंछी, अब देश हुआ बेगाना” गीत बज रहा था। ग्रामीणों ने मोहन लाल की फूल-मालाओं से सजी अर्थी को मुक्तिधाम तक पहुंचाया। वहां उनका प्रतीकात्मक पुतला जलाया गया और सामूहिक प्रीतिभोज का आयोजन किया गया।
मोहन लाल बोले—“मैं अपनी अर्थी खुद देखना चाहता था”
पूर्व वायुसेना अधिकारी मोहन लाल ने बताया, “लोग मरने के बाद अपनी अर्थी नहीं देख पाते, लेकिन मैं यह देखना चाहता था कि मेरी अंतिम यात्रा में कौन-कौन लोग आते हैं और मुझे कितना स्नेह व सम्मान मिलता है।”
उन्होंने बताया कि वायुसेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने गांव की सेवा करने का निश्चय किया। बरसात के दिनों में शवदाह में होने वाली दिक्कतों को देखकर उन्होंने गांव में मुक्तिधाम का निर्माण करवाया। इसी मुक्तिधाम के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने अपनी यह प्रतीकात्मक अंतिम यात्रा निकाली।
मोहन लाल सामाजिक व्यक्ति हैं। उनके एक रिश्तेदार अखिलेश ठाकुर ने बताया, “जब हमें सूचना मिली तो हम भी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। गांव और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में लोग आए। किसी ने इसका विरोध नहीं किया, बल्कि इसे एक अनूठी पहल बताया।”
गांव के उपेंद्र यादव ने कहा, “मोहन लाल समाजसेवी हैं। उन्होंने जो किया, वो अपने आप में अनोखा उदाहरण है। पहली बार किसी को जिंदा देखकर उसकी अंतिम यात्रा में शामिल होने का अनुभव हुआ।”
मोहन लाल के दो बेटे हैं—एक कोलकाता में डॉक्टर हैं और दूसरा 10+2 स्कूल में शिक्षक हैं। उनकी एक बेटी धनबाद में रहती हैं। पत्नी का पहले ही निधन हो चुका है।
