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अवैध कटान पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, हिमाचल सरकार से तीन हफ्ते में मांगा जवाब

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नई दिल्ली/शिमला, 04 सितंबर। हिमाचल प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में हाल ही में आई भीषण बाढ़ और भूस्खलनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। खास तौर पर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बादल फटने के बाद पुष्पा स्टाइल में सैकड़ों टन लकड़ियों के बहकर पंडोह डैम तक पहुंचने की घटना ने देश का ध्यान खींचा है। इस मामले की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने प्रथम दृष्टया में पेड़ों के अवैध कटान की आशंका जताई है और इसे गंभीर विषय करार दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सहित तीन राज्यों से मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स और दृश्य सामग्री से स्पष्ट है कि भारी मात्रा में लकड़ियां बाढ़ में बहकर आई हैं, जो सामान्य हालात में संभव नहीं लगता। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के अलावा पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू.कश्मीर की सरकारों को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

बाढ़ में बह कर पंडोह पहुंची थी हजारों टन लकड़ी

24 जून को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में चार स्थानों पर बादल फटने की घटनाएं हुई थीं, जिसके बाद ऊंचाई वाले क्षेत्रों से बहकर सैकड़ों टन लकड़ियां ब्यास नदी में पहुंचीं और पंडोह डैम के पास जमा हो गईं। इस दृश्य की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं और कई यूजर्स ने इसे फिल्म "पुष्पा" से जोड़ते हुए अवैध कटान की पोल खुलने का आरोप लगाया।

सोशल मीडिया पर उठे सवालों के बाद हिमाचल वन विभाग ने तत्काल जांच के आदेश दिए। हालांकि, जांच में किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं पाई गई। प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (PCCF) संजय सूद ने दावा किया कि ये लकड़ियां प्राकृतिक आपदा में पेड़ गिरने से नदी में बहकर आई थीं, न कि अवैध कटान का परिणाम थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने जताई अवैध कटान की आशंका

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वन विभाग की रिपोर्ट को पर्याप्त नहीं माना और कहा कि प्रथम दृष्टया यह मामला केवल प्राकृतिक आपदा का नहीं, बल्कि मानवनिर्मित संकट का भी प्रतीत होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पर्यावरणीय संतुलन के साथ खिलवाड़ करने की कीमत आम जनता को अपनी जान और संपत्ति से चुकानी पड़ रही है।

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से सरकारों में हलचल

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद संबंधित राज्यों की सरकारों और वन विभागों में हड़कंप मच गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पर्यावरणीय असंतुलन और मानवीय लापरवाही से उत्पन्न आपदाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आने वाली सुनवाई में चारों राज्यों से विस्तृत जवाब मांगा गया है, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या वास्तव में अवैध कटाई हो रही है और क्या इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर

हिमाचल प्रदेश इस वर्ष भारी प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में रहा है। केवल इस वर्ष ही प्रदेश में बादल फटने की 45 घटनाएं, बाढ़ की 95 घटनाएं और 127 बड़े भूस्खलन दर्ज किए गए हैं। इन आपदाओं में अब तक 50 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 43 लोग लापता बताए जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य को 3,690 करोड़ रुपये से अधिक की सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती को पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से अहम कदम माना जा रहा है। यदि जांच में अवैध कटान की पुष्टि होती है, तो यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी होगी कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का खामियाजा भारी आपदाओं के रूप में भुगतना पड़ सकता है। अब निगाहें तीन हफ्ते बाद होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें राज्य सरकारों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।

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