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हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार के इस फैंसले पर लगाई रोक, कर्मचारियों को मिली राहत, यहां जानें

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शिमला, 16 अगस्त। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें कर्मचारियों को पहले से दिए जा चुके वित्तीय और अन्य लाभ वापस लेने के निर्देश जारी किए गए थे। यह आदेश हिमाचल प्रदेश भर्ती एवं सेवा शर्तें अधिनियम, 2024 के तहत 17 जुलाई, 2025 को शिक्षा निदेशालय द्वारा लागू किया गया था।

18 सितंबर को होगी अगली सुनवाई

प्राप्त जानकारी के अनुसार, न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक यह आदेश लागू नहीं किया जाएगा। साथ ही, राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर अदालत के समक्ष विस्तृत जवाब पेश करने का निर्देश भी दिया गया है। अदालत ने प्रथम दृष्टया इन दलीलों को सही मानते हुए संबंधित आदेश के क्रियान्वयन और निष्पादन पर रोक लगा दी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 सितंबर को होगी।

याचिकाकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि जिन लाभों को सरकार वापस लेने की कोशिश कर रही है, वे दरअसल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पहले से दिए गए निर्णयों के बाद लागू किए गए थे। 2 जुलाई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कुलजीत कुमार शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार और अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए लाभ देने के आदेश पारित किए थे। लेकिन हाल ही में लागू हुए अधिनियम का हवाला देते हुए शिक्षा निदेशालय ने नया आदेश जारी कर इन्हें वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर दी।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार के पास कानून बनाने का अधिकार जरूर है, लेकिन वह न्यायालय के अंतिम आदेशों को निष्प्रभावी या निरस्त नहीं कर सकती। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए यह भी तर्क दिया कि सरकार का यह कदम न केवल उनके अधिकारों के खिलाफ है, बल्कि न्यायालय की अवमानना के दायरे में भी आता है। 

73 वर्षीय महिला को नहीं मिली फैमिली पेंशन

हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में 73 वर्षीय महिला निर्मला देवी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने दिवंगत पति की सेवा अवधि के आधार पर फैमिली पेंशन देने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति की सेवा अवधि केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं बैठती, इसलिए उन्हें पेंशन का अधिकार नहीं मिल सकता।

अदालत का तर्क

याचिकाकर्ता के पति बिहारी लाल डोगरा ने 29 अक्तूबर 1965 से लेकर 22 मार्च 1970 तक बीएसएफ में कांस्टेबल के तौर पर लगभग साढ़े चार साल सेवा दी। लेकिन उन्होंने बिना अनुमति इस्तीफा दे दिया। इसके बाद डेढ़ साल के अंतराल के बाद 18 जनवरी 1972 को उन्हें सीआईएसएफ में सीधी भर्ती के माध्यम से नियुक्ति मिली। यहां उन्होंने करीब 15 साल 8 महीने सेवा की, और 1987 में इस्तीफा दे दिया।

क्या कहते हैं नियम

नियमों के अनुसार पेंशन के लिए कम से कम 20 साल की सेवा पूरी करना अनिवार्य है। अदालत ने कहा कि बीएसएफ में दी गई सेवा को इस्तीफे के कारण जब्त मान लिया गया और केवल सीआईएसएफ की सेवा अवधि ही गिनी जा सकती है। इस प्रकार कुल सेवा 20 वर्ष पूरी नहीं हो सकी। याचिकाकर्ता के पति की मृत्यु 2002 में हो गई थी। निर्मला देवी ने 2018 में पेंशन का दावा प्रस्तुत किया, लेकिन अदालत ने इसे अत्यधिक विलंबपूर्ण मानते हुए याचिका खारिज कर दी।

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