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शिमला। हिमाचल के 1 लाख 36 हजार कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम के वादे के साथ सत्ता में आई सुक्खू सरकार क्या वादा भूल गई ? क्या अब पाई.पाई को मोहताज राज्य की कांग्रेस सरकार केंद्र के दबाव में यूपीएस की तरफ झुकती दिख रही है ?
विक्रमादित्य के बयान से बवाल
ये बड़े सवाल आज इसलिए खड़े हो गए हैं, क्योंकि राज्य के पीडब्लूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने यह कहकर बवाल मचा दिया है कि सुक्खू सरकार कैबिनेट मीटिंग में यूपीएस पर चर्चा करने जा रही है। उन्होंने सोमवार को शिमला में यह कहकर सरकार को यू-टर्न को छिपाने की कोशिश की कि जब हिमाचल में ओल्ड पेंशन स्की लागू हुई थी, तब केंद्र सरकार की यूनिवर्सल पेंशन स्कीम नहीं थी। ऐसे में सरकार को इस पर भी विचार करना होगा।
केंद्र ने की है यूपीएस लागू करने की मांग
आपको बता दें कि आठ फरवरी को केंद्र सरकार ने सुक्खू सरकार को पत्र लिखकर यूपीएस को लागू करने की मांग की थी। केंद्र से आई यह दूसरी चिट्ठी थी। इससे पहले के पत्र के जवाब में सुक्खू सरकार ने साफ कर दिया था कि वह ओपीएस के अपने वादे से नहीं पलटेगी।
बताया जाता है कि केंद्र से आए हालिया पत्र में सरकार को 1600 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता का वादा किया गया है। माना जा रहा है कि इस सहायता के बदले सुक्खू सरकार अब कर्मचारियों का गुस्सा भी झेलने को राजी है। वैसे भी हिमाचल सरकार के 9000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार के पास फंसे हैं।
कर्मचारी संगठन कर रहे विरोध
कर्मचारी संगठनों ने विक्रमादित्य के बयान का जमकर विरोध किया है। अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने साफ कह दिया है कि उन्हें किसी भी सूरत में यूपीएस मंजूर नहीं होगा। कर्मचारियों का विरोध भी अपनी जगह इसलिए सही है, क्योंकि सुक्खू सरकार ने सत्ता में आते ही उन्हें पुरानी पेंशन का लाभ दिया है। इससे 2003 के बाद भर्ती हुए कर्मचारियों को भी पुरानी पेंशन का फायदा मिलने लगा है।
लेकिन हिमाचल सरकार को इस कदम की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। केंद्र सरकार ने 2003 से 2009 तक राज्य के पेंशन फंड का 9000 करोड़ रुपए रोक रखा है। सुक्खू सरकार को कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन देने के लिए ही 2000 करोड़ रुपए चाहिए।
कर्ज के बोझ तले दबा है हिमाचल
नौबत यह है कि सरकार के कर्ज का घड़ा पहले ही भर चुका है। केंद्र सरकार लोन लेने की सीमा भी नहीं बढ़ा रही है। ऐसे में सुक्खू सरकार पर केंद्र का इस बात को लेकर भारी दबाव है कि किसी भी हाल में यूपीएस की शर्त को मान लिया जाए। सुक्खू सरकार के लिए इधर कुआं, उधर खाई है। अब देखना यह है कि सुक्खू कैबिनेट कौन सा विकल्प चुनती है।