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अमेरिका ने तिब्बत के मसले पर चीन को दोटूक संदेश दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तिब्बत-चीन विवाद के समाधान को बढ़ावा देने वाले रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर हस्ताक्षर किए। इसमें तिब्बत पर चीन के जारी कब्जे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी पूर्व शर्त के सीधी बातचीत फिर शुरू करने का आह्वान किया गया है।
चीन ने इस इस एक्ट का विरोध किया था और इसे अस्थिरता पैदा करने वाला बताया था। इस एक्ट से संबंधित बिल पिछले साल फरवरी में प्रतिनिधि सभा में और मई में सीनेट में पारित किया गया था।
बाइडन ने शुक्रवार (12 जुलाई 2024) को जारी एक बयान में कहा, आज, मैंने एस. 138, तिब्बत-चीन विवाद समाधान को बढ़ावा देने वाले अधिनियम (अधिनियम) पर हस्ताक्षर किए हैं। मैं तिब्बतियों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने और उनकी विशिष्ट भाषायी, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए कांग्रेस की द्विदलीय प्रतिबद्धता को साझा करता हूं। मेरा प्रशासन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी पूर्व शर्त के सीधी बातचीत फिर से शुरू करने का आह्वान करता रहेगा, ताकि मतभेदों को दूर किया जा सके और तिब्बत पर बातचीत के जरिये समझौता किया जा सके।
क्या कहता रिजॉल्व तिब्बत एक्ट: रिजॉल्व तिब्बत एक्ट में कहा गया है कि तिब्बत विवाद का बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत के जरिये शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए। इसमें तिब्बती लोगों के अलग धार्मिक, भाषाई और ऐतिहासिक पहचान को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि चीन की नीतियां तिब्बत के लोगों की अपनी जीवन शैली को संरक्षित करने की क्षमता को दबाने की कोशिश कर रही हैं। यह कानून चीन के इस दावे को खारिज करता है कि तिब्बत प्राचीन काल से उसका हिस्सा रहा है। इसमें चीन से तिब्बत के इतिहास के बारे में गलत और भ्रामक प्रचार बंद करने की मांग की गई है। यह कानून चीन के भ्रामक दावों से निपटने के लिए अमेरिका के विदेश विभाग को भी नए अधिकार देता है।
चीन ने अमेरिका को दी थी चेतावनी: जून में चीन ने इस विधेयक को लेकर अमेरिका को चेतावनी दी थी। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा था कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर न करें। शनिवार को चीन ने एक बार फिर इस अमेरिकी कानून पर कड़ा विरोध जताया। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, यह कानून चीन के घरेलू मामलों में घोर हस्तक्षेप करता है। कोई भी व्यक्ति या कोई भी ताकत जो चीन को नियंत्रित करने या दबाने के लिए जिजांग (तिब्बत का चीनी नाम) को अस्थिर करने का प्रयास करेगी, सफल नहीं होगी। चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा के लिए दृढ़ कदम उठाएगा।
कई चीनी अफसरों पर पाबंदी: इस बीच, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने हाशिए पर मौजूद धार्मिक और जातीय समुदायों के दमन में शामिल होने के लिए कई चीनी अधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध लगा दिया है। बाइडन ने कहा, मेरा प्रशासन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी पूर्व शर्त के सीधी बातचीत फिर से शुरू करने का आह्वान करता रहेगा, ताकि मतभेदों को दूर किया जा सके और तिब्बत पर बातचीत के जरिये समझौता किया जा सके। यह अधिनियम तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और चीन के अन्य तिब्बती क्षेत्रों को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं देता है।
भारत में तिब्बती धर्मगुरु को अलगाववादी मानता है चीन
तिब्बत के चौदहवें दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागकर भारत आ गए, जहां उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित सरकार स्थापित की। 2002 से 2010 तक दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार के बीच नौ दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। चीन, भारत में रह रहे 89 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक नेता को एक ‘अलगाववादी’ मानता है, जो तिब्बत को देश (चीन) के बाकी हिस्सों से अलग करने के लिए काम कर रहे हैं। जबकि चीन इस क्षेत्र में धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई और राजनीतिक दमन में जुटा हुआ है।
पेंपा सेरिंग ने जो बाइडन का जताया आभार: निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री सिक्योंग पेंपा सेरिंग ने रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन का धन्यवाद किया है। उन्होंने कहा कि चीन-तिब्बत संघर्ष या विवाद को कैसे हल किया जाए, इसका कानून में उल्लेख किया गया है। यह कानून तिब्बती लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की भी बात करता है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून में है। यह कानून चीन के प्रचार या चीन के इस दावे को स्वीकार नहीं करने की भी बात करता है कि तिब्बत प्राचीनकाल से चीन का हिस्सा रहा है, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका मान्यता नहीं देता है। उन्होंने कहा कि हर कोई जानता है कि यह सब धर्मगुरु दलाई लामा के आशीर्वाद से हो रहा है।