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हिमाचल : प्रदेश के मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार के आरोप, मुख्यमंत्री नहीं मानते गंभीर : पढ़ें पूरी खबर

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हिमाचल प्रदेश के बड़े अधिकारी भी अब भ्रष्टाचार में लिप्त नजर आते दिख रहे हैं. हालांकि अभी सिर्फ संगीन आरोप लगे हैं जिससे कई सवाल खड़े हो गए हैं. दरअसल हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव राम सुभग सिंह पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे हैं. राम सुभग सिंह पर आरोप है कि वन विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव रहते हुए इंटरप्रटेशन सेंटर के भवन निर्माण में भारी गड़बड़ी की गई, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई

शिकायतकर्ता ब्रिज लाल की एक आरटीआई के जरिए मांगी जानकारी में ये खुलासा हो पाया है. बताया जा रहा है कि शिकायतकर्ता ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी शिकायत पत्र लिखा. उस शिकायत पत्र पर पीएमओ ने इस मामले की जांच के लिए राज्य सरकार को जांच करने आदेश दे दिए हैं.

आदेश में मुख्य सचिव राम सुभग सिंह का नाम है. हैरानी इस बात की है कि ये आदेश 13 अक्तूबर 2021 को केंद्रीय कार्मिक विभाग ने पीएमओ से आए पत्र का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजे थे. तब से लेकर अब तक करीब 7 महीनों से ये चिठ्ठी मुख्यमंत्री कार्यालय में दबी हुई है.

हालांकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मामले को हल्के में लेते हुए कहा है कि ये एक गुमनाम पत्र है. उनका कहना है कि इस पत्र में बहुत सी चीजें स्पष्ट नहीं हैं. उन्होंने कहा कि लंबे समय से चल रहा है कि कोई भी किसी के भी खिलाफ पत्र लिख रहा है. सीएम ने कहा कि मामला ध्यान में है और इस पर विचार करेंगे.


वन्य प्राणी के प्रधान मुख्य अरणयपाल द्वारा 10 मई 2019 को जांच कमेटी का गठन किया गया था. मौके का निरीक्षण करने के बाद जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार इस भवन पर जो खर्च दिखाया गया, उसमें 69 लाख 57 हजार 988 रुपये का लेखा-जोखा नहीं पाया गया, यानी सरकारी खजाने से ये पैसा बिना कार्य के निकाला गया, जोकि इस जांच में बतौर घोटाला प्रकाशित किया गया है.


इस जांच कमेटी के चैयरमेन आईएफएस प्रदीप ठाकुर थे. टेक्निकल मेंबर बिमल कुमार, एडमिन मेंबर आईएफएस निशांत मंढोत्रा, कॉ-आप्टिड मेंबर एसएस नेगी, जेई और कॉ-आप्टिड मेंबर 2 मिलाप भंडारी सदस्य थे.शिकायतकर्ता के अनुसार, जांच कमेटी ने इस भवन को असुरक्षित घोषित किया है, क्योंकि इसके निर्माण में घटिया क्वालिटी की सामग्री का इस्तेमाल किया गया है. घटिया क्वालिटी सरिया,रेता बजरी इत्यादि के इस्तेमाल की वजह से ये भवन पूर्ण रूप से असुरक्षित है, भविष्य में कोई बड़ा हादसा हो सकता है.

कमेटी की जांच रिपोर्ट में ये भी सनसनीखेज खुलासा किया गया है कि इस भवन के निर्माण से पहले भूमि और मिट्टी का परीक्षण भी नहीं करवाया गया है. जांच रिपोर्ट में ये भी खुलाया हुआ है कि करोड़ों रू. की लागत से बनाए गए इस भवन निर्माण का कार्य वन विभाग के फोरेस्ट गार्ड, बी.ओ., आर.ओ द्वारा करवाया गया है जोकि 10वीं और 12वीं क्लास तक पढ़े हैं और इस प्रकार के सिविल कार्यों के लिए ये अधिकारी योग्य नहीं है. इनके साथ एक एचडीएम को भी नियुक्त किया गया था, वे भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराए गए हैं. इसके अलावा इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के बिना ही भवन में बिजली की वायरिंग का कार्य किया गया जबकि इसके लिए इलैक्ट्रिकल इंजीनियर का होना अति आवश्यक था.

रिपोर्ट के अनुसार करोड़ों रुपये से असुरक्षित भवन बनाया गया और सरकारी पैसा पानी में बहा दिया गया. जांच कमेटी ने इसके लिए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाने की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता ने जांच रिपोर्ट के 9 बिंदू बताए हैं. इस शिकायत पत्र में और कई मामलों के बारे में भी लिखा गया है. शिकायतकर्ता ने ये भी लिखा है कि इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए सरकार द्वारा 2015-16 में 47 लाख 27 हजार 967 की स्वीकृति दी थी तो फिर डीएफओ हमीरपुर, वाइल्ड लाइफ, सीए.ए. वाइल्ड लाइफ कांगड़ा ने 2 करोड़ 66 लाख 82 हजार रुपये कहां से खर्च किए और किसकी स्वीकृति से सरकारी खजाने से पैसे निकाले गए, इस पूरे षड़यंत्र के लिए डीएफओ और सी.एफ. के साथ साथ प्रधान मुख्य अरण्यपाल भी जिम्मेदार है. शिकायकर्ता ने इस भवन को गिराने और दोषी अधिकारियों से जनता के 2 करोड़ 67 लाख रुपये की रिकवरी की जाए और पूरे मामले की विजिलेंस जांच करवाई जाए. इस शिकायत पत्र की प्रतिलिपि सतर्कता विभाग के ततकालीन प्रधान सचिव संजय कुंडू को भी दी गई थी. विभाग ने 19 अगस्त 2019 को वन विभाग को चिठ्ठी लिख कर अपने स्तर पर जांच के आदेश दिए थे.

शिकायतकर्ता का आरोप है कि 1987 बैच के IAS अधिकारी राम सुभग सिंह को पूरे मामले की जानकाऱी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की, जांच करने के बावजूद इस भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया, जब विजिलेंस ने जांच के लिए चिठ्ठी लिखी तो हमीरपुर के डीएफओ का तबादला शिमला कर दिया. शिकायतकर्ता का आरोप है कि जांच रिपोर्ट और अन्य तथ्यों को खंगालने के बाद जाहिर होता है कि राम सुभग सिंह ने कार्रवाई के बजाए संरक्षण दिया जोकि बड़े सवाल खड़े कर रहा है. शिकायतकर्ता के मुताबिक ये भवन 2019 में बनकर तैयार हो गया था और मुख्यमंत्री से इसका उद्घाटन करवाया जाना था, लेकिन आज तक इसका उद्घाटन नहीं हो पाया है. ये भी आपको बताते चलें कि शिकायकर्ता ब्रिज लाल शिवसेना की हिमाचल इकाई के प्रवक्ता भी हैं।

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