एसोसिएशन के अध्यक्ष जसवंत डडवाल व उपाध्यक्ष सुशवीन पठानिया का कहना है कि सरकार से कई बार इस मुद्दे को लेकर बात की गई, लेकिन सरकार से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। अब स्कूल प्रबंधन यदि एक बस को चलाने की भी सोचता है तो उस पर पासिंग, सभी प्रकार के टैक्स, इंश्योरेंस आदि पर करीब डेढ से दो लाख रुपए खर्च आएगा, जिसे वहन करना असंभव है। सभी स्कूल संचालकों ने निर्णय लिया कि ऐसे में अब वह सरकार के खिलाफ कोर्ट जाएंगे।
उधर, एसोसिएशन का कहना है कि सरकार स्कूल शिक्षा बोर्ड की किताबें हम पर थोप रही है और इसी के अनुसार पढ़ाई करवाने की बात कही जा रही है, जबकि बोर्ड के सिलेबस स्कूल के बच्चे 3 माह में पूरा कर लेते हैं। फिर पूरा साल बच्चों को क्या पढ़ाई करवाई जाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा की कोई सीमा नहीं और सरकार आम आदमी के बच्चों के लिए शिक्षा को सीमित करना चाहती है। उनका कहना था कि नेताओ व बड़े अधिकारियों के बच्चे बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं और वहां शिक्षा की कोई सीमा नहीं, लेकिन गरीब परिवार के बच्चों के लिए शिक्षा की सीमा रखी जा रही है। इस मुद्दे को लेकर भी वह कोर्ट का रुख करेंगे।
निजी स्कूलों पर बनाया जा रहा फीस देने का दबाव
आम आदमी के बच्चों के लिए शिक्षा सीमित कर रही सरकार
उधर, एसोसिएशन का कहना है कि सरकार स्कूल शिक्षा बोर्ड की किताबें हम पर थोप रही है और इसी के अनुसार पढ़ाई करवाने की बात कही जा रही है, जबकि बोर्ड के सिलेबस स्कूल के बच्चे 3 माह में पूरा कर लेते हैं। फिर पूरा साल बच्चों को क्या पढ़ाई करवाई जाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा की कोई सीमा नहीं और सरकार आम आदमी के बच्चों के लिए शिक्षा को सीमित करना चाहती है। उनका कहना था कि नेताओ व बड़े अधिकारियों के बच्चे बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं और वहां शिक्षा की कोई सीमा नहीं, लेकिन गरीब परिवार के बच्चों के लिए शिक्षा की सीमा रखी जा रही है। इस मुद्दे को लेकर भी वह कोर्ट का रुख करेंगे।
निजी स्कूलों पर बनाया जा रहा फीस देने का दबाव
बता दें कि हाल ही में शिक्षा बोर्ड द्वारा नौंवीं से बारहवीं तक के दो टर्म वाली परीक्षा पर भी निजी स्कूल संचालकों ने विरोध किया और सरकार से इसे अगले शैक्षणिक सत्र से लागू करने की बात कही। एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार अभी परीक्षाएं लेने जा रही है, जिसके लिए स्कूल से अलग से फीस मांगी जा रही है, जबकि सरकारी स्कूलों के विरोध के बाद उन्हें इससे बाहर रखा गया है। निजी स्कूलों पर फीस देने का दवाब बनाया जा रहा है, जिसका वह विरोध करते हैं। सरकार अपने इस फैसले को वापिस ले।