चार दशक से बंद है बलि: देवकोप तो दूर और अधिक समृद्ध हुआ इलाका, मानलेश्वर मंदिर ने दिखाई थी राह Read Full News...

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इस प्रथा को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था एक जागरूक नागरिक एसडी श्याम (sd shyam) ने हालांकि, बाद में हिमाचल हाईकोर्ट ( Himachal High Court) ने भी धार्मिक अनुष्ठानों और मंदिरों के आसपास के क्षेत्र में बलि पर रोक लगाई थी, लेकिन अदालत के हस्तक्षेप से पहले ही मानलेश्वर महाराज मंदिर (Manleshwar Maharaj Temple) में समाज को दिशा दिखाने वाला यह काम वर्ष 1983 में ही हो चुका था. समय के साथ क्रूर परंपराएं बदलने के लिए साहस चाहिए और समाज से लड़ने की हिम्मत भी. मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान के दौरान निरीह जानवरों की बलि देने का चलन रहा है. पहाड़ में तो यह प्रथा और भी गहराई तक रची-बसी थी, लेकिन सुखद बात यह कि जब पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के कई मंदिरों में बलि का चलन था, तब शिमला जिले के ठियोग इलाके में लाखों लोगों की आस्था के प्रतीक मानलेश्वर महाराज के मंदिर में चार दशक पहले ही बलि प्रथा समाप्त कर दी गई थी.

उल्लेखनीय है कि सितंबर 2014 में हिमाचल हाईकोर्ट ने धार्मिक स्थानों और मंदिरों में पशु बलि पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. हिमाचल में मंडी के करसोग स्थित कामाक्षा देवी मंदिर(Kamaksha Devi Temple) में भैंसे की बलि दी जाती थी. इसके अलावा ऊपरी शिमला के धार्मिक स्थलों में शांद महायज्ञों में भी बकरे की बलि का प्रचलन था. सिरमौर जिले में भी माघ के दौरान पर्व विशेष पर बकरों की बलि दी जाती थी. वर्ष 1983 में जिस समय ऊपरी शिमला के ठियोग उपमंडल (Theog Sub-Division) में मानन गांव के आराध्य देव मानलेश्वर महाराज मंदिर में पशु बलि बंद करने का साहसिक निर्णय लिया गया तो समाज ने देवकोप का डर दिखाया और कहा कि देवता के नाराज होने से इलाके की खुशहाली पर ग्रहण लग जाएगा.

इलाके के जागरूक व्यक्ति सुबीर दास श्याम (Subir Das Shyam) जिन्हें लोग प्यार से एसडी श्याम कहते हैं, उन्होंने पहल करते हुए पशु बलि बंद करवाई. पशु बलि रोकने पर इलाके के लोगों का तर्क था कि खुशहाली रूठ जाएगी, लेकिन इसके विपरीत देखने को मिला इलाके में पहले से अधिक समृद्धि आई और लोग खुशहाल भी हुए. मानलेश्वर महाराज मंदिर से प्रेरणा लेकर बाद में कई और मंदिरों में भी बलि बंद की गई. शिमला जिलाे के मशहूर काली व हनुमान को समर्पित मंदिर में भी नारियल की बलि शुरू हुई. एसडी श्याम बताते हैं कि देवता पशुबलि से नहीं, बल्कि भीतर की पशु वृत्तियों की बलि देने से प्रसन्न होते हैं. समाज को दिशा देने वाले इस प्रसंग को नए सिरे से याद करने की जरुरत है. देश के कई भागों में अभी भी पशु बलि का प्रचलन है ऐसे में हिमाचल की यह पहल प्रेरणा का काम कर सकती है.

जिला शिमला के ठियोग उपमंडल का प्राचीन गांव है मानन. यहां के आराध्य देव मानलेश्वर महाराज के मंदिर की स्थापना सदियों से है. पहले यहां प्राचीन शैली में छोटा सा मंदिर निर्मित था, लेकिन अब इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है. यह मंदिर क्यों खास है और यहां से समूचे समाज के लिए क्या खास संदेश निकलता है, इसे जानना जरूरी है. आज से चार दशक पहले शिमला जिले के ठियोग निवासी सुबीर दास श्याम ने जब यह एलान किया कि पशु बलि से देवता प्रसन्न नहीं होते तो पूरे परगने में जोरदार विरोध हुआ.

धुन के पक्के एसडी श्याम ने ठान लिया कि मानलेश्वर मंदिर में पशु बलि नहीं होगी. यह 1983 की बात थी और वे तब मंदिर कमेटी के प्रमुख थे. लोगों ने देवकोप की दुहाई दी. कहा, बलि न दी तो इलाका उजड़ जाएगा, अकाल पड़ेगा, लोग भूखे मरेंगे, पानी के स्रोत सूख जाएंगे. एसडी श्याम व अन्य नागरिकों ने भी जिद पकड़ ली. पशु बलि बंद करा कर ही माने. हिमाचल हाईकोर्ट ने तो 2014 में पशु बलि पर रोक लगाई थी, लेकिन मानलेश्वर मंदिर से जुड़े एसडी श्याम के प्रयासों से तो वहां 38 साल पहले ही पशु बलि बंद हो गई थी.

उसके बाद से वहां नारियल की बलि दी जाती है. जरा सोचिए, क्या सचमुच इलाके में देवकोप बरसा होगा? जी नहीं, कोई देवकोप नहीं हुआ, बल्कि मानन गांव, जहां देवता का प्राचीन मंदिर है, लगातार खुशहाल होता गया. आज एसडी श्याम के प्रयासों से मंदिर कमेटी ने चार मंजिला सराय भवन व लंगर हॉल बनाया है. मंदिर का भी कायाकल्प हुआ है. पचास लाख की लागत से बने सराय हाल में सैंकड़ों लोग ठहर सकते हैं.

देवता मानलेश्वर मंदिर कमेटी के पूर्व में प्रमुख रहे एसडी श्याम के अनुसार 1983 में पहले उन्होंने मंदिर में शिव पुराण ( Shiva Purana) आयोजित करवाया. वैसे भी देवता मानन दूधाधारी यानी दूध का आहार करने वाले माने गए हैं. संस्कृत के विख्यात विद्वान गोकुल चंद शास्त्री (Gokul Chand Shastri) ने पुराणों का हवाला देते हुए कहा कि कहीं भी पशु बलि का जिक्र नहीं है. एसडी श्याम भी निरीह पशुओं का वध कर उन्हें देवताओं को चढ़ाने और फिर मांस का प्रसाद खाने के खिलाफ थे.

उन्होंने तय कर लिया कि वे यहां बलि प्रथा बंद करवा कर ही दम लेंगे. उनके इस फैसले के खिलाफ गांव के लोगों ने मोर्चा खोल दिया. श्याम को कुछ जागरूक लोगों का साथ मिला तो वे भी अड़ गए. धीरे-धीरे विरोध के स्वर कम होते गए. पुराने समय में शांद महायज्ञ (Shanda Mahayagya) (हिमाचल का एक धार्मिक आयोजन) में तो मानन गांव में सैंकड़ों बकरे काटे जाते थे. श्याम के प्रयासों से यह सब बंद हो गया. लोगों में भी जागरूकता आई. श्याम ने अपने सद्प्रयासों का विस्तार किया.

इलाके में शराबखोरी बढ़ती ही जा रही थी. खासकर शादियों में शराब का बहुत चलन था. उन्होंने गांव के लोगों को साथ लिया और देवता मानलेश्वर से हुक्म हासिल किया. देवता ने आदेश दिया कि शादियों में शराब बंद की जाए. बस, उसके बाद से ब्याह में शराब जैसी सामाजिक बुराई का भी अंत हो गया. एसडी श्याम कहते हैं कि कोई भी देवता निरीह पशुओं की बलि का आदेश नहीं देता ये कुछ जीभ के चटोरे लोगों का फैलाया हुआ भ्रम है. बलि बंद करने से देवकोप जैसी बात का भी कोई आधार नहीं है. इतने बरस बीत गए, लेकिन इलाके में न तो सूखा पड़ा और न ही पानी के स्रोत सूखे. उल्टा हर घर में खुशहाली है. सभी लोगों के पास गाड़ियां हैं और भव्य मकान भी.

यहां जिक्र करना जरूरी है कि हाईकोर्ट ने सितंबर 2014 में ही पशु बलि पर रोक लगाई थी उसके बाद बलि प्रथा के समर्थक लोग सुप्रीम कोर्ट भी गए थे. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद 2017 में ऊपरी शिमला के रोहड़ू में डिसवाणी इलाके में शांत महायज्ञ के दौरान बकरों की बलि दी गई थी. इसपर शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी. तब मंदिर में चार दिशाओं में चार बकरे काटे गए थे. हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह पहला मामला था जब अदालत की अवमानना हुई थी.

उधर अदालत के आदेश के बाद 2015 में भी शिमला के मशोबरा में होने वाले सीपुर मेले में भैंसे की लड़ाई पर रोक लगाई गई थी. हिमाचल के लोक को गहराई से समझने वाले विख्यात कवि आत्मा रंजन (Kavi Atma Ranjan) का मानना है कि मानलेश्वर महाराज मंदिर ने जो संकेत दिया है उसे पूरे देश में ले जाने की जरूरत है. कवि रंजन का कहना है कि पशु बलि से कोई देवता प्रसन्न नहीं होता. शिमला के पौल माता मंदिर (Paul Mata Temple) के प्रबंधन से जुड़े महंत गंगाराम (Mahant Gangaram) का कहना है कि धार्मिक आयोजनों में पशु बलि के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. फिलहाल चार दशक से मानलेश्वर महाराज मंदिर में पशु बलि बंद और कोई देवकोप जैसी घटना देखने को नहीं मिली है.

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