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हिमाचल में पहली बार सेब लाने वाले स्टोक्स का बने स्मारक- कंगना

News Update Media
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शिमला : बाॅलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने सीएम जयराम ठाकुर से मांग की है कि हिमाचल प्रदेश में पहली बार सेब लाने वाले अमेरिकी नागरिक सैमुअल स्टोक्स का स्मारक या लैंडमार्क का नाम उनके नाम पर रखा जाए। यहां बता दे कि अमेरिकी नागरिक करीब 111 वर्ष पूर्व अमेरिका से भारत आए थे। प्रदेश में पहली बार उन्होंने अमेरिका से सेब के पौधे मंगाकर यहां रोपे थे। उसके बाद वे भारत में ही बस गए थे और उन्होंने बाद में अपना नाम सत्यानंद स्टोक्स कर लिया था। कंगना ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि सैमुअल स्टोक्स भारतीय नहीं थे, लेकिन उन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और ब्रिटिश सरकार के देशद्रोह के आरोपों का सामना किया। वह एक अमीर अमेरिकी क्वेकर परिवार से थे, उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया, संस्कृत सीखी, हिंदू बने, एक स्कूल स्थापित किया और हिमाचल प्रदेश में सेब लाए। हिमाचली किसानों की ज्यादातर कमाई सेब के बागों से होती है, लेकिन उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। मैं हमारे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से अनुरोध करती हूं कि हिमाचल में एक प्रमुख स्थल का नाम सैमुअल स्टोक्स के नाम पर रखे। हमें यह उपकार स्वयं पर करना चाहिए, क्योंकि सैमुअल ने जीवन भर हिंदू धर्म का पालन किया और पितृपूजा (पूर्वजों के लिए आभार) का हमारी संस्कृति में सर्वोच्च महत्व है और हमें इस व्यक्ति को अपना सम्मान देना चाहिए। उनके कार्य, कड़ी मेहनत और दूरदर्शिता आज तक हिमाचल में लाखों लोगों को रोजगार दे रही है।


करीब 111 साल पहले 1905 में अमेरिका से एक युवक हिमाचल आया था, युवक नाम था सैमुअल इवांस स्टोक्स था। स्टोक्स ने शिमला के लोगों को बीमारी और रोजी-रोटी से जूझते हुए देखा तो यहीं रहकर उनकी सेवा करने का निर्णय लिया। अमेरिकन युवक ने स्थानीय युवती से शादी की और फिर आर्य समाजी बन गए और अपना नाम सत्यानंद स्टोक्स रख लिया। कोटगढ़ में उस दौर में स्कूल भी खोला था।स्टोक्स ने साल 1916 में अमेरिका से रेड डेलीशियस प्रजाति पौधा लाकर कोटगढ़ की थानाधार पंचायत के बारूबाग में सेब का पहला बगीचा तैयार किया। कोटगढ़ से यह प्रजाति जल्द ही प्रदेश के दूसरे इलाकों में फैली और इसकी अन्य उन्नत किस्में प्रदेश में बड़े पैमाने पर लगाई गई। थानाधार में सोशल सर्विस करने वाले अमेरिकन सैमुअल स्टोक्स के पिता की मौत 1911 में हो गई थी। वापसी के दौरान उन्होंने अमेरिकन सेब के पौधे खरीदकर दो बीघा जमीन पर लगवाएं। स्टोक्स को सेब की खेती के बारे में जानकारी नहीं थी। वे किताबों से पढ़कर इसकी खेती करने लगे। 1921 में इस बगीचे में सेब के पौधे फल देने लगे तो स्टोक्स ने बगीचे का एरिया बढ़ा दिया। 1930 के दशक के शुरू में गोल्डन सेब के पौधे भी लगा दिए गए। 1946 में सत्यानंद स्टोक्स की मृत्यु हो गई थी। बता दें कि हिमाचल में अब हर साल यहां औसतन पांच हजार करोड़ रुपये के सेब का कारोबार होता है।

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