उन्होंने कहा कि डैथ ऑडिट इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि कोरोना संक्रमित अनेक लोग गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। कोरोना संक्रमण की चपेट में आने के बाद अस्पतालों में उन्हें गंभीर बीमारियों का इलाज ही नहीं मिला। विशेषज्ञ डॉक्टर मरीजों के पास तक नहीं गए, जिससे किसी की मौत कैंसर से हुई तो कोई किडनी, लीवर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की बीमारी व हृदयघात से मृत्यु को प्राप्त हुआ। उन्हें कोरोना हुआथा इसलिए सभी मौतों को महामारी में ही गिना गया।
सुक्खू का कहना है कि कोरोना मरीजों के इलाज में कोविड अस्पतालों में गंभीर लापरवाही बरती गई। मरीजों की वरिष्ठï डॉक्टरों ने सुध ही नहीं ली। अनेक संक्रमित तो कोरोना के खौफ से ही मर गए। अस्पतालों में उनकी काऊंसलिंग होनी चाहिए थी। गंभीर बीमारियों का उचित इलाज किया जाता तो अनेक पीड़ितों की जान बच सकती थी क्योंकि कोरोना की तो कोई दवा नहीं थी। गंभीर रोगों के रोगी कोरोना संक्रमित होने पर अन्य दवाओं के लिए तड़पते रहे। सरकार यह भी बताए कि वैक्सीन की पहली डोज के बाद कितने लोगों की मौत हुई और दोनों डोज लगने के बाद कितने लोग मृत्यु को प्राप्त हुए। डैथ ऑडिट में इसका भी अध्ययन हो कि वैक्सीन लगने के बाद मौत का क्या कारण रहा।
कांग्रेस विधायक ने कहा कि विशेषज्ञों ने कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा जताया हुआ है, जिसमें बच्चों के अधिक संक्रमित होने की बात कही है। बावजूद इसके प्रदेश सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। न तो बच्चों के लिए विशेष वार्ड का प्रबंध अस्पतालों में किया गया है और न ही बच्चों के वैंटिलेटर मंगवाए गए हैं। सरकार को तुरंत इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।