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हिमाचल : दलित बच्चे के मामले में पहली गिरफ्तारी, आयोग की सख्ती के बाद महिला अरेस्ट

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न्यूज अपडेट्स 
शिमला, 16 अक्टूबर। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के रोहड़ू में 12 साल के बच्चे द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले में पुलिस ने पहली गिरफ्तारी कर ली है। पुलिस ने इस पूरे प्रकरण में एक महिला को गिरफ्तार किया है। हालांकि इससे पहले महिला ने गिरफ्तारी से बचने के लिए कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी, लेकिन महिला की जमानत याचिका खारिज होने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। 

बता दें कि 16 सितंबर 2025 को रोहड़ू उपमंडल के चिड़गांव क्षेत्र के लिम्बरा गांव में 12 वर्षीय अनुसूचित जाति के बालक ने कथित जातिगत भेदभाव और प्रताड़ना से आहत होकर  घर में जहरीला पदार्थ निगल कर आत्महत्या कर ली थी। बच्चे की मौत पर उसकी मां ने गांव की कुछ महिलाओं जो अनुसूचित जाति से नहीं थी पर बेटे के साथ मारपीट करने और उसे गौशाला में बंद करने के गंभीर आरोप लगाए थे। इतना ही नहीं महिला पर घर की शुद्धि के नाम पर बकरे के भी आरोप लगाए थे।

डीएसपी रोहड़ू प्रणव चौहान ने बताया कि 12 वर्षीय बच्चे ने  जातिगत भेदभाव और प्रताड़ना से आहत होकर जहरीला पदार्थ निगल लिया था। बच्चे को गंभीर हालत में आईजीएमसी शिमला में भर्ती करवाया गया था, जहां उपचार के दौरान बच्चे की मौत हो गई थी। पुलिस ने इस मामले में पहले सामान्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया था। हालांकि, बाद में आरोपों के सामने आने के बाद 26 सितंबर को इसमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति ;अत्याचार निवारणद्ध अधिनियम की धाराएं जोड़ी गईं। अब पुलिस ने इस मामले में एक महिला को गिरफ्तार किया है।

हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए जांच अधिकारी एएसआई मंजीत को निलंबित करने के निर्देश दिए। साथ ही पीड़ित परिवार को सुरक्षा भी प्रदान की गई है। आयोग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार स्वयं बुधवार को रोहड़ू पहुंचे और प्रशासन व पुलिस अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट तलब की। कुलदीप कुमार ने कहा कि पुलिस की प्रारंभिक जांच बेहद लापरवाही भरी रही, जिससे मामला कमजोर पड़ा। उन्होंने बताया कि शिकायत में जातिगत भेदभाव का स्पष्ट उल्लेख होने के बावजूद 20 सितंबर को दर्ज की गई एफआईआर में एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराएं नहीं जोड़ी गईं।

आयोग ने पहली अक्तूबर को एसडीपीओ रोहड़ू से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन समय सीमा बीतने के बाद भी रिपोर्ट नहीं दी गई। आयोग को यह रिपोर्ट 14 अक्तूबर को डीजीपी कार्यालय से मिली, जिस पर सख्त आपत्ति जताते हुए एसडीपीओ से स्पष्टीकरण मांगा गया है।

आयोग अध्यक्ष ने घटनास्थल पर जांच अधिकारियों से पूछताछ की और पीड़ित परिवार से भी मुलाकात की। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से पीड़ित परिवार को 4 लाख 12 हजार 500 रुपये की वित्तीय सहायता पहले ही दी जा चुकी है।

कुलदीप कुमार ने कहा कि लिम्बरा की यह घटना न केवल प्रदेश बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बन चुकी है। आयोग इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष और त्वरित जांच सुनिश्चित करेगा। हमारा उद्देश्य दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें न्याय दिलाना है।

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