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शिमला, 03 सितंबर। हिमाचल प्रदेश में बने मनाली–कुल्लू फोरलेन की तबाही को लेकर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने इंजीनियरों की कार्यप्रणाली और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने की प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराते हुए कड़ी नाराजगी जताई।
इंजीनियरों को ठहराया दोषी
बतौर रिपोर्टस, गडकरी ने कहा कि करीब 3,500 करोड़ रुपये की लागत से बना यह फोरलेन बारिया क्षेत्र में पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। उन्होंने इंजीनियरों को दोषी करार देते हुए कहा कि डीपीआर तैयार करने वाले अधिकारी वास्तविक सर्वेक्षण किए बिना केवल औपचारिकता निभाते हैं। कई बार अधिकारी सेवानिवृत्त होने के बाद खुद की कंपनियां बनाकर घर बैठे गूगल पर आधारित डीपीआर तैयार करते हैं, जिसमें जमीनी हालात की कोई गहराई से जांच नहीं होती।
अधूरी डीपीआर पर टेंडर जारी
उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित इंजीनियरों से कहा कि जब डीपीआर अधूरी और कमजोर होती है, तो हर साल बारिश में सड़क टूटती है, भूस्खलन होता है और लोग जान गंवाते हैं।उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकारी अधिकारी बिना जांच किए इन अधूरी डीपीआर पर टेंडर जारी कर देते हैं। गडकरी ने यहां तक कहा कि कई मंत्री भी तकनीकी पहलुओं को समझे बिना केवल प्रक्रियागत काम पूरा कर देते हैं।
बड़ी कंपनियों का दबाव
केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि बड़ी कंपनियों के दबाव में टेंडरों में तकनीकी और वित्तीय शर्तें डाली जाती हैं, जिससे स्थानीय स्तर की कंपनियां भाग नहीं ले पातीं। उन्होंने इंजीनियरों से अपील की कि पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षित सड़क निर्माण के लिए टनलिंग तकनीक पर अधिक ध्यान दिया जाए, ताकि लोगों की जान जोखिम में न पड़े।
पहले भी उठ चुके हैं सवाल
हिमाचल प्रदेश में फोरलेन परियोजनाओं पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। खासकर चंडीगढ़–मनाली फोरलेन हर साल ब्यास नदी में बहने और बार-बार टूटने के कारण विवादों में रहा है। राज्य के पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने भी एनएचएआई की कार्यप्रणाली पर कड़ा रुख अपनाते हुए उनके खिलाफ आवाज उठाई है।