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शिमला, 20 जुलाई। हिमाचल प्रदेश में सरकारी नौकरी के सिस्टम को लेकर बड़ा बदलाव किया गया है। कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए पुराने कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी सिस्टम को अब पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। उसकी जगह नई ट्रेनी बेस्ड भर्ती नीति (Trainee-Based Recruitment Policy) लागू कर दी गई है। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर कुछ विपक्षी नेताओं ने बवाल शुरू कर दिया है। मगर इसके फायदे या नुकसान कितने होंगे आपको प्वाइंटर से समझाते हैं।
1.क्या है नया बदलाव?
सरकार अब ग्रुप A, B और C पदों के लिए कॉन्ट्रैक्ट के जरिए भर्ती नहीं करेगी। इसके स्थान पर सभी नई भर्तियां अब एक निश्चित ट्रेनी पीरियड के साथ होंगी।
2. किस नियम के तहत ये पॉलिसी लागू होगी?
नई नीति को केंद्रीय सिविल सेवा (CCS) नियमों से छूट दी गई है। यानी अब राज्य सरकार CCS नियमों को बाध्य न मानते हुए अपना स्वतंत्र सिस्टम चला सकती है।
3. ट्रेनी पीरियड कितना होगा और सैलरी क्या मिलेगी?
चयनित उम्मीदवारों को एक तय अवधि (उदाहरण: 2 साल) तक ट्रैनी के तौर पर रखा जाएगा। इस दौरान उन्हें फिक्स्ड स्टाइपेंड (मानदेय) मिलेगा पूरी सैलरी नहीं। सरकार ने संकेत दिया है कि ये स्टाइपेंड पद की श्रेणी के अनुसार तय होगा।
4. ट्रेनी को छुट्टियां मिलेंगी या नहीं?
हां, ट्रेनी को सभी प्रकार की छुट्टियों की सुविधा दी जाएगी- जैसे आकस्मिक अवकाश (casual leave), मेडिकल लीव और मातृत्व लीव इत्यादि। छुट्टियां CCS नियमों के अनुसार ही मिलेंगी, जिससे ट्रेनी को भेदभाव महसूस न हो।
क्या पक्की नौकरी मिलेगी?
पहली बात ये जान लीजिए कि जॉब ट्रेनी सरकारी कर्मचारी नहीं होगा। सरकार द्वारा दावा किया गया है कि ट्रेनी पीरियड सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद ही कर्मचारी को रेगुलर (स्थायी) नियुक्ति मिलेगी। ट्रेनी के रूप में दो वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद नियमित होने के लिए परीक्षा पास करनी होगी। अगर परीक्षा पास हो गई तो कर्मचारी को रेगुलर कर दिया जाएगा अन्यथा वह बाहर हो जाएगा।
क्या इससे युवाओं को राहत मिलेगी?
अब सवाल ये है कि सरकार द्वारा किए गए बदलाव से क्या युवाओं को राहत मिलेगी या नहीं। तो जवाब ये है कि सरकार अब सीधी नियमित भर्ती नहीं कर रही, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट का अनिश्चित भविष्य भी खत्म हुआ। पहले कॉन्ट्रैक्ट बेस पर लोग सालों साल नौकरी करते थे और बाद में उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता था। जिसके बाद उन्हे जॉब मिलने में भी कठिनाई आती।
वहीं, दूसरी ओर नई भर्ती नीति में भी जॉब की कोई गारंटी नहीं है, 2 साल बाद यदि पेपर क्लियर नहीं हो पाया तो कर्मचारी को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। जिससे बेरोजगारी और अधिक बढ़ सकती है। वहीं, कुछ युवा इसे कम वेतन में काम करवाने की नई स्कीम भी कह रहे हैं। पहले युवाओं से 2 साल तक काम निकलवाओ और फिर बाहर का रास्ता दिखाकर दूसरे युवकों से भी ऐसे ही काम निकलवाओ। जिससे युवा बिल्कुल खुश नहीं है।
पुरानी भर्ती नीति में क्या खामी थी?
पुराने सिस्टम में कॉन्ट्रैक्ट पर वर्षों तक कर्मचारी अटका रहता था, पक्की नौकरी मिलने में 5–7 साल लग जाते थे।
पेंशन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलती थीं।
नई नीति इसे खत्म कर फिक्स अवधि में रेगुलर नियुक्ति का रास्ता साफ करती है।
क्या इससे सरकारी खजाने पर असर पड़ेगा?
हां, इससे सरकार पर प्रारंभिक वित्तीय दबाव कम होगा।
स्थायी नियुक्ति से पहले सरकार ट्रेनी पीरियड में कम खर्च करेगी। लेकिन लंबे समय में रेगुलर कर्मचारियों की संख्या बढ़ेगी, जिससे पेंशन, भत्तों और वेतन में बढ़ोतरी होगी।
इन पदों की भर्ती के लिए लागू नहीं होगी नई स्कीम
1 HPAS (हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा) नहीं लागू होगी
2 सिविल जज नहीं लागू होगी
3 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर वर्ग (Asst., Assoc., Professor) नहीं लागू होगी
4 आयुष विभाग में प्रोफेसर नहीं लागू होगी
5 सहायक वन संरक्षक (ACF) नहीं लागू होगी
6 नायब तहसीलदार नहीं लागू होगी
7 अनुभाग अधिकारी (HPF और AS) नहीं लागू होगी
8 सहायक राज्य कर एवं आबकारी अधिकारी नहीं लागू होगी
9 कांस्टेबल (पुरुष/महिला) - पुलिस विभाग नहीं लागू होगी