शिमला में वोकेशनल टीचर्स का धरना - CM सुक्खू को चुकानी होगी हर आंसू की कीमत

Anil Kashyap
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न्यूज अपडेट्स 
शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का चौड़ा मैदान इन दिनों व्यावसायिक (वोकेशनल) शिक्षकों के आक्रोश का केंद्र बना हुआ है। 1 अप्रैल से लगातार सैकड़ों की संख्या में ये शिक्षक दिन-रात खुले आसमान के नीचे डटे हुए हैं। इनका मुख्य आरोप है कि निजी कंपनियों के माध्यम से की जा रही तैनाती में उनके साथ शोषण हो रहा है और सरकार आंखें मूंदे हुए है।

सीएम से संवाद की कोशिश, नहीं मिला जवाब

धरने पर बैठे शिक्षकों ने कई बार सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की है। कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह और कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह उनसे मुलाकात भी कर चुके हैं, लेकिन समाधान की कोई ठोस दिशा नहीं बनी है।

बीते कल यानी सोमवार को जब मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू सचिवालय से गुजरात दौरे पर रवाना हो रहे थे, तो धरने पर बैठे कुछ शिक्षकों ने उनसे मुलाकात करने की कोशिश की। लेकिन सीएम ने संवाद से परहेज करते हुए चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठकर रवाना हो गए। इस दौरान एक महिला शिक्षक की रोती हुई आवाज ने सबका ध्यान खींचा, जब उसने भावुक होकर कहा, "सर हम चौड़ा मैदान में आपका वेट करेंगे गुजरात से आने के बाद, मरते दम तक नहीं हिलेंगे।”

सीएम बोले – केंद्र का मामला है

मीडिया से संक्षिप्त बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि वोकेशनल टीचर्स का मामला केंद्र सरकार के अधीन आता है और इसमें राज्य सरकार की भूमिका सीमित है। हालांकि शिक्षकों का कहना है कि राज्य सरकार अगर चाहे तो इस व्यवस्था को अपने अधीन लेकर निजी कंपनियों की भूमिका समाप्त कर सकती है।

2174 शिक्षक कर रहे हैं संघर्ष

आपको बता दें कि, प्रदेशभर में करीब 2174 वोकेशनल शिक्षक विभिन्न सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे हैं। इनकी नियुक्ति निजी कंपनियों के माध्यम से होती है, और इन्हीं कंपनियों पर शोषण के आरोप लगते रहे हैं- कम वेतन, अनुचित कार्यशर्तें, और अस्थिर भविष्य। शिक्षक चाहते हैं कि इस व्यवस्था को बदलकर उन्हें शिक्षा विभाग के नियमित ढांचे में शामिल किया जाए।

सरकार की चुप्पी से शिक्षक निराश

धरने पर बैठे कई शिक्षकों का कहना है कि वे बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए मेहनत करते हैं, लेकिन खुद उनके अधिकारों और भविष्य की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। सरकार की चुप्पी और असंवेदनशीलता से वे आहत हैं।

बहरहाल, शिमला के चौड़ा मैदान पर यह प्रदर्शन सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के भीतर व्याप्त असमानता के खिलाफ एक गूंज है। यह सवाल उठाता है कि जब शिक्षक खुद असुरक्षित हैं, तो वे समाज को सुरक्षा और दिशा कैसे देंगे? अब देखना यह है कि सरकार इस गूंज को कब सुनती है और क्या कोई सार्थक कदम उठाया जाता है या नहीं।

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