हिमाचल के बेलगाम अफसर ! होली पर निजी पार्टी - सवा लाख रुपया बना बिल - अब भरेगी सुक्खू सरकार

Anil Kashyap
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न्यूज अपडेट्स 
शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रशासनिक गलियारों में एक नई चर्चा का विषय बन गया है मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना द्वारा आयोजित होली पार्टी। इस पार्टी मे प्रदेश के करीब 75 आईएएस अधिकारियों को सपरिवार आमंत्रित किया गया था। मगर पार्टी के आयोजन का खर्च अब विवादों में घिरता नजर आ रहा है, क्योंकि इसका भुगतान सरकारी खजाने से किए जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

प्रति प्लेट 1000 रुपये से बिल किया तैयार

सूत्रों के अनुसार, सेवा विस्तार मिलने के बाद मुख्य सचिव ने यह आयोजन राजधानी के एक प्रतिष्ठित होटल में करवाया था। इस समारोह में अफसरों के साथ उनकी पत्नियों, बच्चों और ड्राइवरों को भी शामिल किया गया। पार्टी में लंच और स्नैक्स परोसे गए और आयोजकों ने प्रति प्लेट 1000 रुपये की दर से बिल तैयार किया। ड्राइवरों के लिए अलग से लंच और टैक्सी चार्जेस भी जोड़े गए।

बिल की रकम और सरकारी प्रक्रिया

इस आयोजन का कुल बिल 1 लाख 22 हजार 20 रुपये बना, जिसे अब होटल प्रबंधन द्वारा प्रदेश सरकार को भुगतान के लिए सौंपा गया है। यह बिल सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा गया है और विभागीय स्तर पर इसकी औपचारिक प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। सवाल इस बात को लेकर उठ रहे हैं कि क्या एक व्यक्तिगत और सामाजिक आयोजन का खर्च सरकारी खजाने से वहन किया जाना उचित है?

निजी आयोजन या आधिकारिक खर्च?

विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह पार्टी एक सामाजिक मिलन समारोह के रूप में आयोजित की गई थी और इसमें किसी भी तरह की आधिकारिक बैठक या सरकारी कामकाज से संबंधित कोई गतिविधि शामिल नहीं थी।

ऐसे में इसे निजी आयोजन माना जा सकता है। इस परिस्थिति में सरकारी धन से इस तरह के खर्च का भुगतान करना कई सवाल खड़े करता है। हालांकि, अभी तक इस मुद्दे पर सरकार या विपक्ष की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन प्रशासनिक हलकों में इसे लेकर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। यदि मामला सार्वजनिक बहस का हिस्सा बनता है तो यह सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है।

सवाल- यह भी

बहरहाल, इस पूरी स्थिति ने एक बार फिर इस सवाल को जन्म दिया है कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले ऐसे आयोजनों के लिए कौन-सी सीमा निर्धारित है और क्या इन्हें व्यक्तिगत आयोजन की श्रेणी में रखकर खुद वहन किया जाना चाहिए या फिर सरकारी खजाने से इनका भुगतान उचित है? अब देखना यह होगा कि सरकार इस मसले पर क्या निर्णय लेती है और क्या आगे ऐसे आयोजनों के लिए कोई दिशा-निर्देश तय किए जाते हैं या नहीं।

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