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शिमला। हिमाचल प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को अब अनुबंध सेवाकाल का लाभ मिलेगा या नहीं, इस पर फैसला अब हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला लेंगे। हिमाचल की सुक्खू सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पारित किया था। अब इसे मंजूरी के लिए राजभवन में भेजा गया है। बीते कल यानी सोमवार को इसकी फाइल राजभवन में पहुंच गई है।
क्या राज्यपाल पास करेंगे विधेयक
अब देखना यह है कि राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला इस विधेयक को पारित कर देते हैं, या सुक्खू सरकार द्वारा पारित दलबदलू विधायकों के पेंशन और भत्तों को रोकने वाले विधेयक की तरह इस पर भी कुछ आपत्ति दर्ज कर इसे वापस भेज दिया जाएगा। जो भी हो अब सरकारी कर्मचारियों को अनुबंध सेवाकाल का लाभ मिलेगा, या नहीं अब इस पर अंतिम फैसला राज्यपाल लेंगे।
विधेयक पारित होने पर क्या होगा
बता दें कि अगर यह विधेयक पारित हो जाता है कि सरकारी कर्मचारियों को अनुबंध सेवाकाल का वरिष्ठता और वित्तीय लाभ नहीं मिलेंगे। बड़ी बात यह है कि यह कानून साल 2003 से लागू माना जाएगा। ऐसे में 2003 के बाद अनुबंध सेवाकाल पूरा करने के बाद पक्के हुए सरकारी कर्मचारियांे को जिस दिन वह नियमित हुए हैं, उसी दिन से वरिष्ठता और वित्तीय लाभ मिलेंगे।
सुक्खू सरकार क्यों लाई विधेयक
दरअसल हिमाचल की सुक्खू सरकार का इस विधेयक को लाने का मकसद प्रदेश पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को कम करना है। अगर यह विधेयक पारित नहीं होता है तो कर्मचारियों को 2003 से अनुबंध सेवाकाल का लाभ देना होगा। अनुबंध सेवाकाल का लाभ देने से कर्मचारियों को ना केवल अतिरिक्त संसाधनों का भारी आवंटन करना पड़ेगा, बल्कि पिछले 21 वर्षों से अधिक समय से वरिष्ठता सूची में भी संशोधन करना होगा।
विधेयक पारित होने के बाद नियमित होने के बाद से मिलेंग लाभ
सुक्खू सरकार द्वारा पारित किए गए विधेयक के प्रावधान से कानून बनने के बाद कर्मचारियों को ज्वाइनिंग की तारीख से वरिष्ठता और वित्तीय लाभ नहीं मिलेंगे। कर्मचारियों की वरिष्ठता उनके नियमित होने के बाद तय की जाएगी। अनुबंध सेवाकाल को इसमें नहीं जोड़ा जाएगा। हालांकि इससे सरकारी कर्मचारियों को काफी नुकसान भी होगा। क्योंकि साल 2003 में अनुबंध सेवाकाल आठ वर्ष का होता था।
प्रदेश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए लिया फैसला
सुक्खू सरकार का इस विधेयक को पारित करने का फैसला प्रदेश की आर्थिक स्थिति भी है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है। सरकार अपने कर्मचारियों और पेंशनरों की पुरानी देनदारियां ही नहीं चुका पा रही है। ऐसे में अनुबंध सेवाकाल को जोड़ने से सरकार पर करोड़ों की और देनदारियां पड़ जाएंगी, जिनसे बचने के लिए ही सरकार इस विधेयक को लाई थी।