मंडी: तरौर स्कूल विवाद में प्रिंसिपल किरण चौधरी को हाइकोर्ट से मिली बड़ी राहत, जानें पूरा मामला

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मंडी, 07 जून। हिमाचल प्रदेश के तरौर स्कूल में पिछले साल शुरू हुआ विवाद अब हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद समाप्त हो गया है। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रिंसिपल किरण चौधरी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनके तबादले को रद्द कर दिया और उनकी मांग के अनुसार उन्हें उनके घर के नजदीक पलौहटा स्कूल में स्थानांतरित कर दिया। इस मामले में सभी आरोपों को कोर्ट ने खारिज कर दिया। यह मामला शिक्षा विभाग में पारदर्शिता और निष्पक्षता के महत्व को उजागर करता है।

विवाद की शुरुआत

7 दिसंबर 2023 को तरौर स्कूल की प्रार्थना सभा में एक छात्र संस्कृत में गीत गा रहा था। गीत के दौरान छात्र के हकलाने और कांपने पर प्रिंसिपल किरण चौधरी ने उसे दया भाव से बैठने के लिए कहा। इस घटना से शास्त्री सुनील दत्त शर्मा नाराज हो गए और उन्होंने प्रिंसिपल पर संस्कृत भाषा के अपमान का आरोप लगाया। शास्त्री ने सभा में प्रिंसिपल का विरोध करते हुए अंग्रेजी भाषा पर अभद्र टिप्पणियां कीं। प्रिंसिपल ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन शास्त्री नहीं माने। इस घटना ने स्कूल में तनाव पैदा कर दिया।

सीएमसी और ग्रामीणों की भूमिका

इस घटना के बाद तत्कालीन सीएमसी प्रधान गगन वशिष्ठ ने मामले को और तूल दिया। उन्होंने कुछ ग्रामीणों को इकट्ठा किया और स्कूल में कई दिनों तक हंगामा किया। हैरानी की बात यह थी कि हंगामा करने वाले कई ग्रामीणों के बच्चे तरौर स्कूल में पढ़ते ही नहीं थे। ये लोग प्रिंसिपल के खिलाफ शास्त्री पर की गई कथित दुर्व्यवहार की कार्रवाई को हटाने की मांग कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई उचित थी, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते मामला बढ़ गया।

राजनीतिक दबाव और प्रिंसिपल का तबादला

विवाद के बाद प्रिंसिपल किरण चौधरी पर दबाव बनाने के लिए उनका तबादला झुंगी स्कूल में कर दिया गया। सूत्रों का कहना है कि एक स्थानीय कांग्रेस नेता के नेतृत्व में कुछ ग्रामीणों ने शिक्षा मंत्री से मुलाकात की थी, जिसके बाद तबादले के आदेश जारी हुए। तबादले का कोई ठोस कारण नहीं था, क्योंकि न तो प्रिंसिपल का कार्यकाल पूरा हुआ था और न ही उनके खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत सिद्ध हुई थी। प्रिंसिपल ने हार नहीं मानी और हाई कोर्ट का फैसला प्राप्त करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।

शास्त्री के नियमितीकरण का विवाद

सूत्रों के अनुसार, प्रिंसिपल ने शास्त्री सुनील दत्त शर्मा के खिलाफ दुर्व्यवहार और नियमों का पालन न करने की रिपोर्ट दी थी। इसके बावजूद शिक्षा निदेशक ने शास्त्री को नियमित करने के आदेश जारी कर दिए। यह नियमों के खिलाफ था, क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी को नियमित करने के लिए प्रिंसिपल की सहमति जरूरी होती है। प्रिंसिपल ने शास्त्री को नियमित करने से इनकार किया तो उन पर विभागीय और राजनीतिक दबाव डाला गया। एक अज्ञात व्यक्ति ने मुख्यमंत्री का हवाला देकर प्रिंसिपल को फोन कर शास्त्री को तुरंत नियमित करने की मांग की थी। इस व्यक्ति की पहचान आज तक रहस्य बनी हुई है।

स्कूल का शानदार प्रदर्शन

विवादों के बावजूद तरौर स्कूल का शैक्षणिक प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा। कक्षा 6 से 10वीं और 12वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम 100% रहा, जबकि 11वीं कक्षा में केवल एक छात्र असफल हुआ। यह प्रिंसिपल किरण चौधरी की अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा का परिणाम था। X पर कुछ यूजर्स ने प्रिंसिपल की प्रशंसा करते हुए लिखा कि उनके नेतृत्व में स्कूल ने न केवल शैक्षणिक बल्कि नैतिक मूल्यों को भी बढ़ावा दिया। एक यूजर ने पोस्ट किया, “प्रिंसिपल किरण चौधरी ने दबाव में भी स्कूल की गरिमा बनाए रखी।”

हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रिंसिपल किरण चौधरी के तबादले के मामले की सुनवाई की और उनके पक्ष में हाई कोर्ट का फैसला सुनाया। कोर्ट ने उनके तबादले को रद्द करते हुए उन्हें पलौहटा स्कूल में स्थानांतरित करने का आदेश दिया, जो उनके घर के बेहद करीब है। कोर्ट ने सभी आरोपों को निराधार पाया। प्रिंसिपल ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “मैं हाई कोर्ट का फैसला का सम्मान करती हूं। मुझे मेरे जन्मस्थान के पास नियुक्ति देकर कोर्ट ने मुझे बहुत खुशी दी है।”

बीएनएस धाराएं और सजा

हालांकि इस मामले में कोई आपराधिक कार्रवाई दर्ज नहीं हुई, लेकिन यदि शिकायतकर्ता या अन्य व्यक्तियों द्वारा प्रिंसिपल के खिलाफ मानहानि या धमकी जैसे कृत्य सिद्ध होते, तो भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 351(2) के तहत मानहानि का मामला दर्ज हो सकता था। इसके तहत 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। इसी तरह, धारा 351(1) के तहत धमकी देने पर 7 साल तक की सजा का प्रावधान है।

सामाजिक प्रतिक्रियाएं

X पर इस मामले को लेकर कई यूजर्स ने अपनी राय दी। एक यूजर ने लिखा, “यह फैसला न केवल प्रिंसिपल के लिए, बल्कि उन सभी शिक्षकों के लिए प्रेरणा है जो राजनीतिक दबाव का सामना करते हैं।” एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, “शिक्षा विभाग को ऐसी घटनाओं से सबक लेना चाहिए और निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।” ये प्रतिक्रियाएं दर्शाती हैं कि लोग शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता और न्याय की मांग कर रहे हैं।

शिक्षा विभाग के लिए सबक

यह मामला शिक्षा विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। राजनीतिक दबाव और अनुचित हस्तक्षेप से न केवल शिक्षकों का मनोबल प्रभावित होता है, बल्कि स्कूल का शैक्षणिक वातावरण भी खराब होता है। तरौर स्कूल का यह विवाद दर्शाता है कि सही नेतृत्व और कानूनी प्रक्रिया से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है।

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