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शिमला। हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार की वित्तीय अनियमितताओं पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने सख्त टिप्पणी की है। CAG की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि राज्य के कई स्थानीय निकायों और प्राधिकरणों ने 2,795.23 करोड़ रुपये के खर्च का कोई हिसाब नहीं दिया। इसके लिए 2,990 उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) जमा नहीं किए गए, जिससे यह साफ नहीं हो पाया कि यह राशि कहां और कैसे खर्च हुई। रिपोर्ट में पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली को भी राज्य की आर्थिक सेहत के लिए खतरा बताया गया है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने यह रिपोर्ट 27 मार्च 2025 को विधानसभा में पेश की। आइए जानते हैं इस रिपोर्ट की बड़ी बातें।
2,795 करोड़ का हिसाब नहीं: उपयोगिता प्रमाणपत्र लंबित
CAG रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मार्च 2024 तक विभिन्न योजनाओं के तहत 2,795.23 करोड़ रुपये के 2,990 उपयोगिता प्रमाणपत्र लंबित हैं। इनमें से वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 1,744.60 करोड़ रुपये के 1,342 UC और 2022-23 तक के 1,050.63 करोड़ रुपये के 1,648 UC शामिल हैं। ये प्रमाणपत्र जमा न होने से यह पता नहीं चल पा रहा कि विधानमंडल से स्वीकृत राशि वास्तव में उसी उद्देश्य के लिए खर्च हुई या नहीं। CAG ने इसे गंभीर वित्तीय लापरवाही करार देते हुए सरकार से जवाबदेही सुनिश्चित करने को कहा है। यह अनिश्चितता न सिर्फ पारदर्शिता पर सवाल उठाती है, बल्कि धन के दुरुपयोग की आशंका को भी बढ़ाती है।
ओपीएस की बहाली से बढ़ेगा वित्तीय बोझ
हिमाचल सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से पुरानी पेंशन योजना (OPS) लागू की थी, जिसे CAG ने राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भरा बताया। रिपोर्ट में कहा गया है कि OPS की बहाली से भविष्य में राज्य पर भारी वित्तीय दबाव पड़ेगा। 1 जुलाई 2024 तक 1,14,544 कर्मचारियों ने OPS का विकल्प चुना, जबकि 1,364 कर्मचारी नई पेंशन योजना (NPS) में बने रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि OPS से पेंशन बिल बढ़ेगा, जो पहले से कर्ज में डूबे हिमाचल के लिए चुनौती बन सकता है। CAG ने चेतावनी दी कि बिना ठोस योजना के यह कदम राज्य को आर्थिक संकट में धकेल सकता है।
आपदा राहत पर खर्च: केंद्र से मिली बड़ी मदद
2023 में हिमाचल में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने राज्य को झकझोर दिया था। CAG के अनुसार, आपदा राहत के लिए सरकार ने 1,239.18 करोड़ रुपये खर्च किए, जो पिछले साल के 622.42 करोड़ से दोगुना से भी ज्यादा है। इस राशि का पूरा हिस्सा राजस्व व्यय से लिया गया। केंद्र सरकार ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई और 1,190.85 करोड़ रुपये की सहायता दी, जिसमें अनुदान और केंद्रीय मदद शामिल है। हालांकि, राज्य को अपनी जेब से भी 48.33 करोड़ रुपये अतिरिक्त देने पड़े। यह खर्च सड़कों, पुलों और बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान को ठीक करने में लगा।
94.35 करोड़ बिना बजट खर्च: नियमों की अनदेखी
CAG ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया कि वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार ने 94.35 करोड़ रुपये बिना बजटीय मंजूरी के खर्च कर दिए। यह राशि चार मांगों- वन्यजीव विभाग, उद्योग, अनुसूचित जाति विकास और अन्य- के तहत खर्च हुई, जो हिमाचल प्रदेश बजट मैनुअल का उल्लंघन है। रिपोर्ट में इसे गंभीर वित्तीय अनुशासनहीनता बताया गया। इससे सवाल उठता है कि क्या सरकार बिना योजना के धन का इस्तेमाल कर रही है, जो आगे चलकर और मुश्किलें पैदा कर सकता है।
शेयर पूंजी में निवेश: 5,524 करोड़ का दांव
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने 2021-22 से 2023-24 तक विभिन्न प्रतिष्ठानों की शेयर पूंजी और ऋण पत्रों में निवेश बढ़ाया। यह राशि 4,913 करोड़ से बढ़कर 5,524.23 करोड़ रुपये हो गई। इसमें सांविधिक निगमों में 96.75 करोड़ और अन्य कंपनियों में 95.50 करोड़ का निवेश शामिल है। इस निवेश से 2023-24 में 191.17 करोड़ रुपये का लाभांश मिला, जो पिछले साल के 180.90 करोड़ से थोड़ा ज्यादा है। सहकारी बैंकों और समितियों ने भी 1.59 करोड़ और 1.81 करोड़ रुपये की शेयर पूंजी का विमोचन किया। यह निवेश सरकार की आय का एक स्रोत बना, लेकिन कर्ज के बोझ के बीच इसकी उपयोगिता पर सवाल हैं।
कर्ज का बढ़ता पहाड़: राहत की उम्मीद कम
हिमाचल पहले से ही कर्ज के जाल में फंसा है। 2022-23 में राज्य का कुल कर्ज 86,589 करोड़ रुपये था, जो 2021-22 के 73,534 करोड़ से काफी ज्यादा है। 2023-24 में भी कर्ज बढ़ने की आशंका है। आपदा, OPS और अनियोजित खर्च ने राज्य की माली हालत को और कमजोर किया है। CAG ने सरकार को चेताया कि अगर उपयोगिता प्रमाणपत्रों की लापरवाही और अनुशासनहीन खर्च जारी रहा, तो यह संकट और गहरा सकता है।