रुपये में कमजोरी के पीछे क्या है वजह
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की करंसी डेस्क की रिपोर्ट के अनुसार डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट के पीछे बड़ी वजह यह है कि अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़ों के बाद ग्रीनबैक 104.43 डॉलर के मल्टी ईयर हाई पर पहुंच गया. हालांकि, पिछले महीने महंगाई ने थोड़ी राहत दी है. अप्रैल में CPI डाटा मार्च में 8.50 फीसदी की तुलना में 8.30 फीसदी रहा है. अप्रैल के लिए कीमतों में 0.30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई जो मार्च में फूड और एनर्जी के बिना कोर इनफ्लेशन 0.60 फीसदी बढ़ा है.
तेजी से बढ़ सकती हैं ब्याज दरें
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा है कि महंगाई अभी भी हाई लेवल पर है और उन्हें भरोसा है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व महंगाई पर अपना काम करेगा. फेडरल रिजर्व के मेंबर ने महंगाई के आंकड़ों के बाद कहा कि वह ब्याज दरें बढ़ाने का सपोर्ट करेंगे. ऐसे में यूएस फेड आने वाले मॉनेटरी पॉलिसी में फिर 50 प्वॉइंट का इजाफा ब्याज दरों में कर सकता है.
78 प्रति डॉलर पार कर जाएगा रुपया!
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के अनुसार ग्लोबल मार्केट सेंटीमेंट चीन में लॉकडाउन से और बिगड़े हैं. इससे आगे ग्रोथ पर असर पड़ेगा. वहीं महंगाई और जियो पॉलिटिकल टेंशन पहले से एक फैक्टर मौजूद है. इस बीच, घरेलू बाजार की बात करें तो आरबीआई अगस्त तक रेपो रेट को बढ़कर 5.15 फीसदी कर सकता है. ऐसे में रुपया अगर 77 प्रति डॉलर के नीचे आता है तभी इसमें कुछ सुधार देखने को मिलेगा. ऐसा न होने पर रुपया 78 से 78.25 प्रति डॉलर के लेवल तक पहुंच सकता है.
रुपये में कमजोरी से क्या होगा असर
IIFL के VP-रिसर्च अनुज गुप्ता का कहना है कि रुपया कमजोर होने का मतलब है कि देश का इंपोर्ट महंगा होगा. वैसे भी भारत कच्चे तेल की जरूरतों का 80 फीसदी इंपोर्ट करता है, जिसके बदले डॉलर में पेमेंट करना होता है. ऐसे में क्रूड का इंपोर्ट महंगा होगा, जिससे सरकार की बैलेंसशीट पर असर होगा. क्रूड महंगा होने से पेट्रोल और डीजल में भी बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे ट्रांसपोर्टेशन की कीमत ज्यादा होगी. इंपोर्ट होने वाली कमोडिटी की कीमतें भी बढ़ेंगी. प्रोडक्शन के लिए जरूरी रॉ मटेरियल महंगे होंगे, जिससे प्रोडक्शन कास्ट बढ़ जाएगी. यानी देश में महंगाई का लेवल और बढ़ेगा. सीधे सीधे कह सकते हैं कि आम आदमी के लिए दाल रोटी महंगी होने लगेगी