सिरमौर के ट्रांसगिरि इलाके की 144 में से 120 पंचायतों में माघी पर्व मनाने की परंपरा है। राजगढ़ क्षेत्र का कुछ इलाका यह पर्व नहीं मना रहा। शिलाई और रेणुका विधानसभा क्षेत्रों की पंचायतों में भी पर्व की धूम है। हर घर में बकरा कटता है। कई लोग तीन से चार बकरे काटते हैं।
कई सामर्थ्य के अनुसार इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। बताया जा रहा है कि जिस परिवार के लोग शाकाहारी हैं, वे भी यह परंपरा निभाते हैं। अनुमान के मुताबिक हर पंचायत में लगभग 80 से 100 बकरे कटते हैं। करीब 120 पंचायतों में काटे जाने वाले बकरों की कीमत करोड़ों रुपये आंकी गई है।
यह त्योहार दैवीय शक्ति से भी जोड़ा गया है। त्योहार वाले दिन सुबह कुल देवी (ठारी, डुंडी, कुजयाट व काली) के नाम का आटे और घी का खेंडा (हलवा) तैयार कर देवी को चढ़ाने के बाद बकरे को गुड़ाया जाता है। रोनहाट के हरिराम सिंगटा, मनीराम, दलीप सिंह, शिलाई के प्रताप सिंह, रामभज शर्मा और अमर सिंह ने बताया कि हर घर में पकवान बनाए गए, जिसे ‘बोशता’ कहते हैं। बताया कि माघी त्योहार को कुछ इलाकों में ‘भातियोज’ भी कहा जाता है।
त्योहार का हिस्सा सभी रिश्तेदारों, शादीशुदा लड़कियों को दिया जाता है। पूरे महीना मेहमाननवाजी का दौर चलेगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि गिरिपार यानी ट्रांसगिरि इलाके का यह बड़ा त्योहार है। इस दिन हजारों बकरे, सुअर और खड्डू काटे जाते हैं। यह हाटी संस्कृति का मुख्य हिस्सा भी है।
दैवीय शक्ति से भी जोड़ा गया है त्योहार
यह त्योहार दैवीय शक्ति से भी जोड़ा गया है। त्योहार वाले दिन सुबह कुल देवी (ठारी, डुंडी, कुजयाट व काली) के नाम का आटे और घी का खेंडा (हलवा) तैयार कर देवी को चढ़ाने के बाद बकरे को गुड़ाया जाता है। रोनहाट के हरिराम सिंगटा, मनीराम, दलीप सिंह, शिलाई के प्रताप सिंह, रामभज शर्मा और अमर सिंह ने बताया कि हर घर में पकवान बनाए गए, जिसे ‘बोशता’ कहते हैं। बताया कि माघी त्योहार को कुछ इलाकों में ‘भातियोज’ भी कहा जाता है।
त्योहार का हिस्सा सभी रिश्तेदारों, शादीशुदा लड़कियों को दिया जाता है। पूरे महीना मेहमाननवाजी का दौर चलेगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि गिरिपार यानी ट्रांसगिरि इलाके का यह बड़ा त्योहार है। इस दिन हजारों बकरे, सुअर और खड्डू काटे जाते हैं। यह हाटी संस्कृति का मुख्य हिस्सा भी है।