महंगाई की मार ! हिमाचल में साढ़े 6 लाख से ज्यादा परिवारों ने छोड़ा गैस सिलेंडर भरवाना- पढ़ें पूरी खबर

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शिमला: महंगाई की मार से आम जनता बुरी तरह त्रस्त है. महंगाई डायन अब जाने का नाम नहीं ले रही है, वो बस खाए जा रही है. कोरोना के दौर में सरकार से उम्मीद थी कि राहत मिलेगी लेकिन राहत मिलना तो दूर उलटा हर चीज की कीमत में बेहताशा बढ़ोतरी हो रही है. हिमाचल प्रदेश में स्थिति और गंभीर होती जा रही है. नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार बीते एक साल में हिमाचल में 29 फीसदी उपभोक्ताओं ने घरेलू गैस सिलेंडर नहीं भरवाया है।

हिमाचल प्रदेश में 23 लाख से ज्यादा उपभोक्ता हैं. ऐसे में इस रिपोर्ट के मुताबिक 6 लाख 67 हजार से ज्यादा परिवारों ने बीते एक साल में गैस सिलेंडर नहीं भरवाया है. रिपोर्ट के अनुसार ये संख्या ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है. अधिकतर ग्रामीण इलाकों में लोगों ने अब खाना पकाने के लिए पारंपरिक चूल्हे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. ईंधन के लिए लकड़ी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

बता दें कि शिमला में घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 931.50 रुपये है और सब्सिडी मात्र 31.83 रुपये मिल रही है जबकि कर्मशियल सिलेंडर की कीमत 1696 रुपये है. राज्य सरकार की ओर गृहणी सुविधा योजना के तहत बीते 3 सालों में लगभग 3 लाख 16 हजार नए कनेक्शन दिए गए हैं. केंद्र की उज्जवला योजना के माध्यम से भी काफी नए कनेक्शन दिए गए हैं. जनता को सरकार ने सिलेंडर तो दे दिए लेकिन अब जनता के पास उसे भरवाने के पैसे नहीं हैं. बीते एक साल में गैस सिलेंडर के दाम कितनी बार बढ़े हैं, उससे जनता जनार्दन अच्छी तरह से वाकिफ है।

जिन इलाकों में गर्मी पड़ती है उन क्षेत्रों में लोग भी लोग चूल्हे का उपयोग कर रहे हैं. सोलन जिले की कंडाघाट तहसील की वाक्ना पंचायत में अधिकतर लोग खाना बनाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस पंचायत की आंजी सुनारा गांव की रहने वाली उर्मिला देवी, सुमन वर्मा, शांता देवी और अनिता वर्मा ने बताया कि सिलेंडर भरवाना अब बस से बाहर हो रहा है. पहले एक महीने में 2 से 3 सिलेंडर इस्तेमाल हो रहे थे और अब एक से ही गुजारा करना पड़ रहा है. गैस बचाने के लिए चूल्हे पर ही खाना बना रहे हैं।

बता दें कि इस इलाके में भयंकर गर्मी पड़ती है लेकिन चूल्हे पर खाना बनाना मजबूरी हो गई है. सरकार की वो बात भी बेमानी साबित हो रही है जिसमें कहा गया था कि ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को धुंए के खतरे से बचाना है और पर्यावरण का संरक्षण भी करना है।

राजधानी शिमला की बात करें तो पंचायत भवन में सब्जी खरीदने आए संजय ने कहा कि अब भगवान का नाम ही सबसे सस्ता रह गया है, बाकी सब आम आदमी की पहुंच से दूर हो गया है.  72 साल की उम्र में प्राइवेट नौकरी कर रहे गोपाल कृष्ण महंगाई से इतने परेशान हैं कि वो कह रहे है कि अब इंसान की जान ही सबसे सस्ती रह गई है. परिवार में 6 सदस्य हैं और आर्थिक बोझ कम करने के लिए इस उम्र में भी नौकरी करनी पड़ रही है।

हाल ही में जब इसके बारे में हमने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग से महंगाई के बारे में सवाल किया था तो उनका कहना था कि सरकार महंगाई को कम करने के लिए उचित कदम उठा रही है. मंत्री के मुताबिक दालों और खाद्य तेल की कीमतों में कमी आई है, घरेलू गैस की कीमतों को लेकर कहा था कि ये दाम परमानेंट नहीं हैं, कीमतों में उतार-चढ़ाव चलता रहता है. महंगाई के लिए मंत्री जी कोरोना महामारी को भी जिम्मेवार मानते हैं, साथ ही कहते हैं कि चिंता की बात नहीं है जल्द ही महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा।

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