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बिलासपुर : मोटरबोट संचालकों का मामला पहुंचा हाई कोर्ट, लिखित हलफनामा देने के आदेश, जानें पूरा मामला

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बिलासपुर। गोविंद सागर झील में मोटरबोट संचालकों को दरकिनार कर बाहरी कंपनी को काम देने का मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंच गया है। दि गोविंद सागर जल परिवहन समिति जिला बिलासपुर की ओर से सोहन लाल ने इस बारे में प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि मोटर बोट संचालक गोविंद सागर झील में दशकों से पुश्त दर पुश्त मोटर बोट चला रहे हैं।

जिला प्रशासन की ओर से मोटर बोट संचालकों को फेरी एक्ट के तहत 165 रूट जिला प्रशासन की ओर से जारी किए गए हैं, जिन पर मोटरबोट संचालक 1962 से बोट चलाते आ रहे हैं। लेकिन सरकार ने गोविंद सागर झील को साहसिक खेल गतिविधियों के लिए अधिसूचित किया है। इसके तहत झील में क्रूज, शिकारे और स्टीमर आदि चलाए जा रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि बाहरी कंपनी को काम देने के लिए स्थानीय लोगों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। जिला प्रशासन ने स्थानीय मोटरबोट संचालकों को बाहर करने के लिए ही 50 लाख टर्न ओवर कंपनी का पंजीकृत होना और तीन साल का अनुभव होने की शर्त लगाई है। उन्होंने इन शर्तों को अव्यवहारिक करार दिया है। याचिका में इस टेंडर को रद करने की मांग की है। टावर लाइन शोषित मंच के राष्ट्रीय संयोजक अधिवक्ता रजनीश शर्मा ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश की डबल बेंच ने सोहन लाल बनाम हिमाचल सरकार व अन्य याचिका को स्वीकार करते हुए इस मामले पर सुनवाई की तथा गंभीरता से मोटर बोट चालकों की समस्याओं को सुना।

मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने न्यायालय ने स्थानीय मोटर बोट संचालकों के अधिकारों को संरक्षित करने को लेकर उठाए गए अनिवार्य कदमों को लेकर सरकार और प्रशासन से लिखित हलफनामा देने का आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई पांच सितंबर को होगी।

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