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मंडी, 20 अगस्त : आजकल नाचन के विधायक विनोद कुमार पर कानूनगो दीनानाथ शर्मा द्वारा की गई एफआईआर का मामला लगातार गरमा रहा है। जहां इस बात को लेकर भाजपा के लोगों में रोष है वही कांग्रेस के लोग बेहद खुश नजर आ रहे है। लेकिन असल में उस दिन जो हुआ वह किसी भी प्रकार से एफआईआर का कारण नही बन सकता। हमारी टीम ने जब इस मामले का विश्लेषण किया और वीडियो देखे तो पाया कि ना तो विनोद कुमार ने की बतमीजी की है और ना ही कानूनगो को कोई भी ऐसा काम करने के लिए जबरदस्ती कहा जो किसी भी प्रकार से कानून के खिलाफ हो।
इस मामले में जब हमारी टीम की बात विधायक विनोद कुमार से हुई तो उनका कहना था कि इलाका के पटवारी ने लोगों को बाकायदा लिख कर तिरपाल देने की सिफारिश की थी। उन्होंने बताया कि पटवारी द्वारा लिख कर दिए जाने के कारण लोग कानूनगो कार्यालय तिरपाल लेने पहुंचे थे। उन्होंने वहां तिरपाल को मांग की और कानूनगो ने लोगों को कार्यालय के बाहर बैठाए रखा था। उसके बाद लोगों को तिरपाल देने से मना कर दिया गया। उसके बाद उन्होंने अपनी समस्या से विधायक विनोद कुमार को अवगत करवाया।
लोगों की मांग पर विधायक विनोद कुमार कानूनगो कार्यालय पहुंचे और उन्होंने कानूनगो दीनानाथ शर्मा से इस बारे बात की। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। यहां एक सवाल खड़ा होता है कि क्या एक जनप्रतिनिधि लोगों की मांग के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए गुस्सा भी नही हो सकता। क्या उनका सवाल पूछना कानून अपराध है।
अगर एफआईआर की बात करें तो बल्ह पुलिस ने विधायक के खिलाफ 353, 186 और 189 में प्राथमिकी दर्ज की है। जोकि किसी भी हाल में तर्क संगत या न्यायपूर्ण नही है। आईपीसी 353 के मुताबिक यह धारा किसी पर हमला करने के लिए प्रयोग होती है। जबकि घटना का पूरा वीडियो वायरल हुआ है और विधायक विनोद कुमार ना तो कहीं हाथ उठाते दिख रहे है और ना ही उन्होंने कानूनगो को कहीं चोट पहुंचाई है।
अगर हम कानूनगो दीनानाथ शर्मा की एफआईआर देखें तो पूरी एफआईआर में कहीं कोई जिक्र नहीं है कि उनको कोई चोट पहुंचाई गई या किसी भी प्रकार से काम करने से रोका गया। कानूनगो दीनानाथ शर्मा ने एफआईआर में साफ साफ लिखा है कि उनको जान का खतरा महसूस हुआ लेकिन उन्होंने कहीं भी ऐसी किसी कोशिश का जिक्र नहीं किया है।
यही हाल आईपीसी की धारा 186 और 189 का भी है; विधायक वीडियो में कहीं भी कानूनगो को काम करने से रोकते या धमकी देते नजर नही आ रहे है। बल्कि विधायक विनोद कुमार कानूनगो को पटवारी द्वारा लिखित में दी गई मांग को पूरा करने का आग्रह करते दिखाई दे रहे है। विधायक का लहजा थोड़ा तल्ख है, लेकिन उसके पीछे जायज कारण भी है। विधायक विनोद कुमार ने बताया कि जो लोग तिरपाल लेने वहां पहुंचे थे वो 12 अगस्त से घरों से बाहर रह रहे थे। पटवारी की रिपोर्ट के बाबजूद लोगों को तिरपाल नही दिए जा रहे थे। लोग 12 से 13 किमी दूर से पैदल चल कर कार्यालय पहुंचे थे, उनको तिरपाल दिलाने के लिए विधायक वहां पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि लोगों की सुरक्षा के लिए तिरपाल मांगे गए थे नाकि किसी विशेष कार्य के लिए कानूनगो को कहा गया था।
एक जनप्रतिनिधि पर एफआईआर करना और बिना जांच उनको जनता की नजरों में संदेह के घेरे में खड़ा कर देना कई सवाल खड़े करता है। जबकि बिना जांच हिमाचल पुलिस एफआईआर तो छोड़ो रोजनामचा रिपोर्ट तक दर्ज नही करती। उसके बाबजूद एक जीते हुए प्रतिनिधि के साथ इस तरह का व्यवहार, जो आम जनता को सुरक्षा के लिए काम कर रहा है, अपने आप में बेहद शर्मनाक है।
इस मामले ने अब राजनीतिक रूप ले लिया है और कांग्रेस के नेताओं ने विधायक पर तरह तरह के आरोप लगाना शुरू कर दिए है। उधर एसडीएम स्मृतिका नेगी ने भी विधायक के खिलाफ कई तरह के गंभीर आरोप लगाए है। लेकिन अभी तक उन्होंने खुद कोई भी शिकायत या प्राथमिकी दर्ज नही करवाई है।