जोकि हिमाचल के मीडिया चैनलों का लोकतंत्र के चौथे स्तंभ होने पर सवाल खड़ा कर रहा है।16 मार्च 2022 को शिमला में रुमित सिंह ठाकुर और मदन ठाकुर द्वारा रची साजिश के तहत अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुशील शर्मा पर जानलेवा हमला हुआ, हमले में उनके सिर पर गंभीर चोटें आई और ऊनी साथ नौ और पुलिस कर्मी भी घायल हुए। इतना ही नही, हमले में शामिल गुंडों ने डंडों और लोहे की रोड़ों से पुलिस की गाड़ियों और कई निजी गाड़ियों को भी भारी नुकसान पहुंचाया।
इस मामले शिमला पुलिस ने तत्काल कानूनी कार्यवाही करते हुए मुख्य आरोपियों को उसी रात गिरफ्तार किया और न्यायालय ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए पांच दिन का पुलिस रिमांड भी दिया। न्यायालय ने हमले में प्रयोग हुए हथियारों की बरामदगी को लेकर यह आदेश दिया, लेकिन इधर मीडिया चैनल लाइव टाइम्स टीवी ने प्रायोजित प्रोपोगेडे के तहत आरोपियों को बचाने के लिए मुहिम शुरू कर दी।
उन्होंने अपने चैनल पर लोगों को न्यायालय, कानून और पुलिस की कार्यवाही के खिलाफ भड़काने के लिए मुख्य आरोपी की पत्नी का एक वीडियो अपने फेसबुक पेज पर जारी कर दिया।इतना ही नही बकायदा मीडिया चैनल की ओर से मुख्य आरोपी रूमित सिंह ठाकुर के समर्थन में कॉमेंट भी किया गया। जिसका स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। लोग स्क्रीन शॉट पोस्ट करके तरह तरह के सवाल उठा रहे है।
राइट फाउंडेशन के अध्यक्ष सुरेश कुमार ने अपनी पोस्ट में लाइव टाइम्स टीवी द्वारा किए इस कॉमेंट पर पोस्ट करते हुए लिखा की लाइव टाइम्स टीवी का बहिष्कार किया जाना चाहिए। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि "हम जानते है इस मामले में कोई कुछ नही बोलेगा। लेकिन अगर समय रहते आवाज नही उठाओगे तो ऐसे मीडिया चैनल कल को अपराधियों को बचाने के लिए आगे आएंगे। बेहतर होगा, आज से ही विरोध करो।
ऐसे चैनलों का बहिष्कार करो, जो हमारी पुलिस के खिलाफ अपराधियों के साथ खड़े होते है। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुशील शर्मा को जान से मारने की कोशिश की है। उनके साथ 9 पुलिस कर्मियों को सिरों पर हमला हुआ और Live Times Tv इस मामले में अपराधियों के साथ खड़ा है? हम सरकार से मांग करते है कि तत्काल इस सोशल मीडिया चैनल को बैन किया जाए। ताकि प्रदेश में प्रेस और मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल ना उठे।"इतना ही नही उन्होंने अपनी पोस्ट में महामहिम राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, हिमाचल प्रदेश पुलिस, पीएमओ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ ब्रॉडकास्ट आदि को भी टैग किया है।
अगर कानून रूप से देखा जाए तो राइट फाउंडेशन के अध्यक्ष की बात कानूनी रूप से भी सही है। जब मामला न्यायालय में पहुंच जाता है तो उस पर टिप्पणी करने का किसी भी संस्था या मीडिया चैनल का कोई अधिकार नहीं रह जाता। यह मामला तो मीडिया चैनल द्वारा पुलिस अधिकारियों को जान से मारने की कोशिश करने के आरोपी के समर्थन का है। अब देखना यह होगा कि इस मामले में न्यायालय, सरकार और पुलिस लाइव टाइम्स टीवी के खिलाफ क्या कार्यवाही करते है।